दो दिन पहले सीतापुर में गोमती नदी में ६ दोस्त एक दूसरे को बचाने के प्रयास में डूब गए जबकि २ लोग किसी तरह बच पाए। घटना इतनी तेज़ी से घटी कि किसी को भी कुछ भी समझने का मौका ही नहीं मिला। इम्तिहान ख़त्म होने की खुशी जिंदगी के इम्तिहान में ही फ़ेल कर देगी इस तरह की नियति कौन सोच सकता है ? आम दिनों की तरह यह भी एक दिन की सुर्खी बनकर ख़त्म हो गई, पर क्या कभी हमने विचार किया कि विविधता से भरे अपने देश में हम क्यों नहीं इन छोटी छोटी बातों को अपने बच्चो को समझाने का प्रयास करते हैं कि कभी भी इस तरह की कोई बेवकूफी न करें। अनजान पानी में तो बड़े बड़े तैराक भी फँस जाते हैं तो फिर सामान्य लोग जिन्हें तैरना भी नहीं आता है वो किस तरह से इस अथाह जल राशि से पार पा सकेंगें ? हम कितने भी दावे कर लें कि हमारा शिक्षा तंत्र बहुत अच्छा है और वह हमारे बच्चों को सब कुछ सिखा देता है पर क्या ये बच्चे सब कुछ जानते थे ? शायद हाँ और ना दोनों बातें हो सकती हैं यहाँ पर । क्योंकि मात्र परेशानी का ज़िक्र करना ही काफी नहीं वरन उससे होने वाले नुकसान को भी बताना बहुत ही आवश्यक होता है। ये बच्चे इतना तो जानते थे कि पानी खतरनाक हो सकता है पर इस तरह से जान भी जा सकती है यह कोई नहीं जानता था बस यही चूक उनको भारी पड़ गई और उनके परिवारों के लिए गोमती जैसी जल विहीन रहने वाली नदी भी सदैव के लिए एक दुःख का कारण बन गई। अच्छा हो कि इस तरह की सभी समस्याओं के बारे में बच्चो को बताया जाए और उनको कुछ हद तक इन सबसे जूझने के लिए तैयार भी किया जाए। पर यह तैय्यारियाँ तो केवल आगे की दुर्घटनाओं को ही रोक सकती हैं रोज़ ही होने वाली और इस तरह की घटनाओं में जिनके परिजन दूर हो गए उनके लिए तो कुछ भी नहीं हो सकता बस यही प्राथना की जा सकती है कि बच्चे इस तरह की परेशानियों में न घिरें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
दुखद घटना। कुछ पल का रोमांच विवेक पर भारी पड़ता है और जाने अनजाने इन्हीं गलतियों की पुनरावृत्ति हो जाती है.............पीछे रह जाता हैं पश्चाताप, कुछ कचोटती यादें और कुछ समय बाद फ़िर से वही...............
जवाब देंहटाएंअक्सर ऐसे हादसों में बच्चों की मौत हो जाती हैं ... आपने सही कहा ... अच्छा हो कि इस तरह की सभी समस्याओं के बारे में बच्चो को बताया जाए और उनको कुछ हद तक इन सबसे जूझने के लिए तैयार भी किया जाए।
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