मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

बचत किसके लिए ?

आज एक समाचार ने लगभग सभी समाचार पत्रों में स्थान पाया है कि बिजली बचाना राष्ट्रपति भवन से सीखना चाहिए। आज जब पूरे देश में बिजली का संकट बना हुआ है और इससे बचने का कोई उपाय किसी के पास नहीं है तो किस तरह से लोगों को प्रेरित किया जाए कि वे भी बिजली के मामले में संयम बरतें। बिजली की बचत भी बिजली के उत्पादन के समान है पर किसी दूर दराज के क्षेत्र में जा कर देखिये कि वहां पर इस मूल भूत आवश्यकता की आपूर्ति किस तरह से की जाती है ? आप जाकर किसी से भी कह कर देख लें क्या जवाब मिलता है ? लोग छूटते ही कह देते हैं कि केवल ४/५ घंटे ही तो आती है और हमें बिल पूरा भरना होता है तो आने पर क्यों ना जलाये भले ही उसकी ज़रूरत है या नहीं ? बिजली विभाग किस तरह से काम कर रहे हैं ये आप देख सकते हैं । अपने घाटे को छुपाने के लिए उपभोक्ताओं पर किस तरह से कई चोर रास्ते से पैसा वसूलने का करतब इनके द्वारा किया जाता है । आज तक कोई सर्व मान्य हल नहीं बन पाया है जिससे यह तय किया जा सके कि आम उपभोक्ता सताया न जा सके।
आज भी आप पूरे देश के किसी भी बिजली दफ्तर में चले जाएँ आपको एक जैसा ही देखने को मिलेगा। लोग अपने बिल उठाये परेशान होते रहते हैं और कोई भी उनको सही बात बताने के लिए नहीं मिलता है। बिजली वाले कहते हैं कि कोई बिल नहीं भरता, जनता कहती है कि इतने अनाप-शनाप बिल भेजे जाते हैं कि बिल जमा करने का मन ही नहीं करता है । मेरी समझ में एक बात नहीं आती जब उत्तर प्रदेश में बिजली दे ही नहीं पाते तो न्यूनतम बिल जैसा अत्याचार उपभोक्ताओं पर क्यों किया जाता है ? झूठ बोलना कोई इनसे सीखे, एक बानगी देखिये मैं उ० प्र० की ही बात करूंगा ये कभी भी यह नहीं कहते कि प्रदेश की वास्तविक मांग क्या है और कितनी कमी है ? ये हमेशा प्रतिबंधित मांग की बात करते हैं। प्रतिबंधित मांग को निकलने का तरीका भी देखिये- जो बिजली दी जानी प्रस्तावित है वही प्रतिबंधित मांग है, एक और पहलू जब इनको पता ही नहीं है कि वास्तविक मांग क्या है तो ये लोग आपूर्ति क्या ख़ाक करेंगें ? इनकी योजनायें भी प्रतिबंधित मांग के अनुसार ही हैं और जब तक इनकी कोई एक यूनिट चालू होती है तब तक तो पूरे प्रदेश में मांग कई गुना बढ़ चुकी होती है। इनकी आंखों पर कौन सा चश्मा लगा है कि इनको वास्तविकता और भ्रम में अन्तर ही नहीं दिखाई देता है ? पहली बात विभाग को अपने उपभोक्ताओं पर भरोसा करना होगा और यह मानसिकता हटानी होगी कि हर उपभोक्ता बिजली चुराने में लगा है साथ ही हम उपभोक्ताओं को भी अपने बिल पूरी तरह से समय से जमा करने चाहिए जिससे कभी भी ज़रूरत पड़ने पर विभाग के पास अन्य योजनाओं के लिए पैसे उपलब्ध रह सकें। फिल हाल तो बचत के सपने देख कर ही हम सब खुश हो रहे हैं अब नंगा क्या पहने और क्या बिछाए ? कुछ हो भी तो तभी तो हम बचत के बारे में भी सोच सकेंगें।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. असल मे सरकारी योजनाओं का ही यह नतीजा है की आज इतने सालों के बाद भी हमे बिजली और पानी जैसी सुविधाएं उपलब्ध नही है।

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