रविवार, 17 मई 2009
१५वी लोकसभा
देश की जनता ने जिस तरह से गुमराह करने वालों को इस चुनाव में ठुकरा दिया वह अपने आप में बेमिसाल है, आज के युग में जब दुनिया नित नई ऊँचाइयाँ छू रही हो तो भारत जैसे लोकतंत्र में जात पांत पर चुनाव लड़ा जाना सिर को शर्म से झुका देता है। क्यों ये नेता यह नहीं समझ पाते कि सामाजिक ताने बाने में हर बात की ज़रूरत होती है। किसी एक से अगर काम चल जाता तो समस्याएँ होती ही नहीं । नेता पता नहीं किस ग़फलत में जीते हैं कि उन्हें या तो वास्तविकता दिखाई ही नहीं देती या फिर वे उसकी अनदेखी करना चाहते हैं। इस बार जनता ने वोट के ठेकेदारों को जिस तरह से पटकनी दी उसके लिए वो बधाई की पात्र है। देखना यह है कि कितने लोग लोक तंत्र के लिए परिपक्व हैं ? अधिकतर नेताओं ने परिणामों को खुले दिल से स्वीकार कर लिया है पर पता नहीं क्यों मायावती इसके लिए भी विरोधियों को दोष देती दिखाई दे रही हैं ? अच्छा होता कि वे भी इस बात को मान लेतीं कि अब साफ़ और विकास की राजनीति करने का समय है न कि अपनी कमियों पर परदा डाल दूसरों को कोसने का समय... अगर समय रहते मायावती यह भांप लेतीं कि प्रदेश में लोगों ने सपा के कुशासन से ऊब कर बसपा को मत दिया था अब वही लोग बसपा से भी ऊब गए लगते हैं। बस फर्क सिर्फ़ इतना है कि अभी तक जो लडाई सपा बसपा में थी कांग्रेस ने उसमे हिस्सा बटा लिया है और यदि समय रहते सपा बसपा ने अपने को नहीं सुधारा तो उनका इतना हिस्सा भी जाता रहेगा। देश की जनता ने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत के पास सौम्य परन्तु कड़े फैसले लेने वाला प्रधानमंत्री तो है ही साथ ही पार्टी के काम सरकार पर हावी न हो सकें इसको देखने के लिए एक संवेदन शील नेता भी है। और सबसे बढ़कर मजबूती से आगे बढ़ने वाला युवा नेता भी है और जनता ने इन सभी को चुन कर अपनी मंशा को बता दिया है।
अंत में जिस तरह से सोनिया गाँधी ने लालू पासवान को भी संप्रग की बैठक में बुला लिया है उससे उनकी छवि में सबको साथ लेने की बात भी जनता को पता चल गई है अब यह देखना है कि सोनिया के इस कदम से देश की राजनीति के अन्य पुरोधा क्या सबक लेते हैं ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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un netaon ne pehale kya sabak liya jo ab lenge magar aj jo janta ne kar dikhaya hai ye jaroor asha aur khushi ki bat hai shayad ek naye dooryodaye ka aagaz hai jai ho
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