मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

बी एस एन एल है तो भरोसा है ???

देश की सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड की कार्य प्रणाली उपभोक्ताओं के लिए हमेशा से ही सिर दर्द रही है। फिर भी ये देश के लोगों का सरकारी उपक्रमों के प्रति लगाव ही है जो इन्हें चलाता रहता है। कोई जानता है कि इन नवरत्नों, महारत्नों, मिनी रत्नों के बीच में जहाँ सब ठीक नहीं होता वहीँ जनता किस तरह से पिसती रहती है ?
ताज़ी समस्या बी एस एन एल की नई मोबाइल सीरीज़ ९५++ ++++++ से जुड़ी हुई है। आज प्रति स्पर्धा का समय है और निजी कंपनी बहुत अच्छी सुविधाएँ लेकर मैदान में हैं फिर भी पता नहीं क्यों निगम के बड़े अधिकारी अपने को इस तरह से दिखाते हैं जैसे उनके बिना कुछ होने वाला ही नहीं है। बात ९५ सीरीज़ की करते हैं अभी कुछ दिन पहले तक हम इसका उपयोग लोकल नंबर लगाने के लिए करते थे। अब सारे नम्बर ख़त्म होने पर निगम ने इसे भी मोबाइल के लिए शुरू कर दिया।वर्मान में इस सीरीज़ के नम्बर पर उपभोक्ता निगम की किसी भी सेवा का लाभ नहीं ले सकते हैं। एक्सेल पावर, विशेष टैरिफ बाउचर, समस पैक और अन्य कोई सुविधा इस सीरीज़ के उपभोक्ता नहीं ले पा रहे हैं । ग्राहक सेवा केन्द्र से वही रटी रटाई भाषा सुनाई देती हैं कि कुछ समस्या है जिसे बहुत जल्दी ही सुलझा लिया जाएगा। सवाल यह नहीं है कि समस्या क्यों है ? सवाल यह है कि देश में एक नई सीरीज़ किस तरह बिना मूलभूत सुविधाओं के ही शुरू कर दी गई ? उपभोक्ता आपको पैसे देते हैं आप उन पर कोई एहसान नहीं कर रहे है ? यदि किसी तरह की समस्या है तो नया सिम देते समय उपभोक्ता को यह बताना चाहिए कि वर्तमान में इस तरह की समस्या चल रही है इसके समाधान में कुछ समय भी लग सकता है। आज भी निगम बनने के बाद भी आई टी एस अधिकारी इसे एक सरकारी विभाग की तरह ही चलाना चाहते हैं ?
व्यवस्था का लोचा भी देखिये कि जब इन आई टी एस अधिकारियों को चुनने का विकल्प दिया गया तो इन्होने अपनी ठसक वाली जगह पर दूरसंचार विभाग में ही रहना चाहा पर जब पोस्टिंग की बात आई तो ये सभी निगम में अधिकारी बनना चाहते हैं। मुझे तो इनकी स्थिति वैसी ही लगती है कि ओखली के अन्दर और चोट से बाहर ? अगर कभी निगम को घाटे के कारण सरकार बेचना चाहेगी तो ये सभी डूबते जहाज़ के चूहों की तरह दूर संचार विभाग में कूद जायेंगें ? जब इनका कोई लगाव ही नही है इस निगम से, तो इस तरह की समस्याएँ तो आती ही रहेंगीं । सरकार पता नहीं किस दबाव में इनको एक तरफ़ नहीं कर पा रही है ? निगम के हितों की सुरक्षा के लिए अब तो सरकार को सोचना ही होगा क्योंकि इस देश में संकट के समय काम करने वाले मनमोहन, श्री धरन, लालू की संख्या बहुत ही कम है और हम चलते हुए निगम को मरते हुए नहीं देखना चाहते.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

3 टिप्‍पणियां:

  1. सरकार को बीएसएनएल सेवाओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए। यह देश की संचार सेवाओं की रीढ़ है।

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  2. निश्चित ही इस ओर ध्यान देना चाहिये.

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  3. अरे सर, भारत सरकार के पास इस काम के अलावा बहुत सारे काम है।

    परेशानी ये है की इनके अधिकारी और सारे कर्मचारी सब निकम्मे हो चुके है वो लोग कोई काम नही करना चाहते है मेरे घर पर बी.एस.एन.एल. का इन्ट्र्नेट कनेक्श्न है मैं जानता हूं की कितनी परेशानी होती है।

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