शर्म-अल-शेख में पाक के प्रधान मंत्री से बात के बाद भारत ने जो साझा बयान जारी किया था वह आज पूरी तरह से राजनीति की भेंट चढ़ गया लगता है। यह बिल्कुल सही है कि पहली बार भारत पाक के बयान में बलूचिस्तान का ज़िक्र आया है। देश में विपक्षी केवल इस बात पर ही उखड़े हुए हैं कि आख़िर यह कैसे हुआ ? जब कोई बात-चीत पूर्वाग्रह में जकड़ कर की जाती है तो उसका परिणाम बहुत अच्छा नहीं होता। मनमोहन सरकार ने जिस तरह से बलूचिस्तान में भारत के किसी भी हस्तक्षेप से इंकार किया यह तो उनकी मजबूती ही है कि उन्होंने सच को बताया। इस बात पर इतना हल्ला मचाने की आवश्यकता है ही नहीं। कल ही अमेरिका के अफगान-पाक विशेष दूत रिचर्ड हाल्ब्रुक ने भी कह दिया कि पाक ने कई बार इस मामले को उनके सामने भी उठाया है पर अभी तक कोई सबूत नहीं दिखाया जिससे इस बात की पुष्टि हो सके कि भारत वास्तव में वहां पर किसी तरह से पाक को अस्थिर करने की साजिश रच रहा है। जब हमारा वहां पर कुछ है ही नहीं तो फिर डर किस बात का है। पाक का इतिहास रहा है कि वह अपनी बातों से मुकरता रहा है बस यही एक पक्ष है जिसका हमें ध्यान रखना है क्योंकि जब भी हम अपने को खुला छोड़ देंगें तो पाक अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आएगा। अच्छा ही है कि उसे साफ़ शब्दों में बता दिया गया कि इस तरह के दुष्प्रचार से कुछ नहीं मिलने वाला यदि कहीं कोई सबूत है तो उसे प्रस्तुत किया जाए। यहाँ पर यह बात समझ से परे है कि जब भारत किसी भी देश में अनुचित गतिविधियों में लिप्त नहीं है तो फिर इस बात को कहने में कोई बुराई भी नहीं है। आशा है कि नेता गण अपने क्षुद्र स्वार्थों को पीछे छोड़ कर कुछ ठोस करने का प्रयास करेंगें जिससे कभी बड़ा मुद्दा आने पर सारा देश उसी तरह से एक साथ खड़ा होकर दुनिया को यह दिखा सके कि हम सब एक हैं जैसा मुंबई हमले के बाद हुआ था । एक बात तो होनी ही चाहिए कि रक्षा, आंतरिक सुरक्षा, शिक्षा, विदेश, विकास आदि मुद्दों पर किसी भी तरह के मतभेद नहीं होने चाहिए क्योंकि सरकारें तो बदलती रहती हैं पर देश की समस्याएँ कमोबेश वही रहती है।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अपने क्षुद्र स्वार्थों को पीछे छोड़ कर नेता काम करें .. क्या कह रहे हैं आप ?
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