उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार को दिशा निर्देश जारी कर ४ हफ्ते का समय दिया है जिसमें उसे हलफ़ नामा देना है की भविष्य में अब सड़कों पर किसी भी धार्मिक स्थल का निर्माण नहीं होगा। साथ ही न्यायालय ने पुराने मामलों में कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए कुछ भी कहने से इंकार कर दिया है। आज क्या दुनिया की सर्व-शक्तिमान शक्ति इतनी लाचार है कि उसे सड़क के आलावा कहीं और स्थान ही नहीं मिलता ? देश में इतने सारे कानून और नियम पहले से ही बने हुए हैं कि उन पर ही अमल हो जाए तो सब ठीक हो जाए पर रोज़ नई समस्याओं से जूझने के लिए हम नए कानूनों का सहारा लेते रहते हैं। हो सकता है कि न्यायालय किसी विवाद को जन्म न देना चाहता हो पर क्या वह सही धर्म है जो सड़क पर चलने में भी बाधा उत्पन्न करे ? हो सकता है कि मेरे इस विचार के समर्थक कम ही हों पर पूजा/ विश्वास व्यक्ति का नितांत व्यक्तिगत मामला है और इसका इस तरह से प्रदर्शन ही ग़लत है पर हमारे देश में सहयोग की भावना के कारण ऐसे आयोजन बहुत बड़े स्तर पर होते रहते हैं। देश में एक कानून होना चाहिए यदि किसी भी कोने में किसी भी परिस्थिति में कोई धार्मिक स्थल सार्वजानिक जीवन में बाधा पहुँचा रहा है तो उसका तत्काल ही उचित स्थान पर सम्मानपूर्वक स्थानांतरण कर देना चाहिए और साथ ही कानून में ऐसा भी होना चाहिए कि कोई भी इस निर्णय के खिलाफ न्यायालय नहीं जा सके। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि यह तो मूल अधिकारों का हनन है पर जब आप अपने अधिकारों की बात करें तो अपने कर्तव्यों का भी पूरी तरह से पालन करें। हम अपना हक़ तो मांगते हैं पर हमें क्या करना है यह भूल जाते हैं॥ आशा है कि भविष्य में कुछ ऐसा हो सकेगा कि इन धार्मिक स्थलों से याता-यात में बाधा नहीं पड़ेगी.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सही निर्णय है। मन्दिर-मसजिद यदि व्यवस्था में बाधा खड़ी करते हैं या अवैध स्थल पर बने हैं तो उन्हें तोड़ना सर्वथा देशहित में है।
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