मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

क्या हाथी नहीं रहेगा साथी ?

आखिरकार जिस बात का बसपा को डर था वह होने के करीब आ गई लगती है, चुनाव आयोग ने बसपा को हाथी की मूर्तियाँ लगाने के सम्बन्ध में जो ताज़ा निर्देश जारी किए हैं और जिस तरह से सवाल पूछे गए हैं उनसे तो यही लगता है की शायद जल्दी ही माया को यह हिसाब देना पड़े कि आखिर सार्वजानिक स्थानों पर जनता के पैसे से लगायी गयी मूर्तियों को क्यों न हटा दिया जाए और यदि विपक्षी यह साबित करने में सफल हो गए कि यह चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन है तो शायद कोई ही बसपा की मान्यता बचा पाए। आख़िर कार विपक्ष के पास बहुत दिनों के बाद एक मुद्दा आया है पर वे बसपा को आसानी से घेर सकते हैं, और इस लोकतंत्र में जब कोई शर्म हया बची ही नहीं है तो विपक्षियों से यह आशा तो नहीं की जा सकती कि वे एक जिम्मेदार विरोध तक ही सीमित रहेंगें ? जिससे सभी को खतरा लगता है तो कोई भी बसपा को आसानी ने छोड़ने वाला नहीं है। पता नहीं किस की सलाह मानकर मायावती ने इस तरह से मूर्तियाँ लगाने का काम इतने बड़े स्तर पर करा दिया जो कि अब उनके और पार्टी के लिए एक मुसीबत जैसा लगने लगा है। चुनाव आयोग यदि पूरी तरह से चाहे तो बसपा का चुनाव चिन्ह ज़ब्त किया जा सकता है। इस मामले में बहस की बहुत सी गुंजाईश सदैव ही बनी रहेगी कि क्या आयोग को मान्यता वापस लेने का अधिकार है भी या नहीं ? पर जब आयोग किसी दल को मान्यता प्रदान कर सकता है तो निश्चित तौर पर वह मान्यता को रद्द भी कर सकता है और आवश्यकता होने पर चुनाव चिन्ह भी रद्द कर सकता है। फिल हाल तो बिना सोचे समझे किए गए काम आज बसपा को परेशान तो कर ही रहे हैं।
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