मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 8 अगस्त 2009

राष्ट्रीय प्रतिभाएं क्या करें ?

अभी संसद में यह मामला भी उठ चुका है कि पटियाला में चैम्पियन मुक्केबाजों को किस तरह आव भगत में चाय पिलाने के काम में लगाया गया ? बात यहाँ पर कुछ खास नहीं है पर बहुत अहम् हो जाती है जब देश में खेलों के स्तर पर विचार किया जाता है ? क्या किसी की हिम्मत है कि किसी चैम्पियन क्रिकेटर को इस तरह से चाय पिलाने में लगा सके ? फिर देश में अन्य खेल खेलने वालों के साथ ऐसा क्यों ? हो सकता है कि इन संघों के पास पैसे की कमी हो पर इसका मतलब यह तो नहीं होता कि कुछ सीखने आए इन बच्चों को बर्तन साफ़ करने पर ही लगा दिया जाए ? यहाँ पर यह बात कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि हर जगह पर शिष्टाचार के नाते ऐसा किया जाता है। सामान्य शिष्टाचार अपनी जगह है पर किसी खिलाड़ी से इस तरह का बर्ताव किया जाना निंदनीय तो है ही। हो सकता है कि पता नहीं कितने और काम इन खिलाड़ियों को करने पड़ते हों ? पर इस बार खेल मंत्री के पहुँच जाने पर और अख़बारों में चित्र छाप जाने से इस घटना का खुलासा हो गया हो ? देश में अतिथि की सेवा करना सिखाया जाता है भगवन कृष्ण ने भी युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में जूठी पत्तलें साफ़ करने का काम अपने हाथ में लिया था पर वह काम स्वयं उन्होंने करना चाहा था। किसी आगंतुक की सेवा करना भारत की परम्परा है और हम इस बात से कभी अपना मुख मोड़ नहीं सकते। अच्छा ही हुआ कि गिल साहब ने वहां जाकर इस तरह की घटनाओं को जाने अनजाने ही सुर्खियों में ला दिया। सम्मान देना अच्छा है पर संघ भविष्य में ध्यान रखें कि खिलाड़ियों कि एक स्वागत समिति बनाकर इस तरह के कार्यों को अंजाम दिया जाए। खिलाड़ियों की जय हो जो इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी देश के लिए कुछ करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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