हो सकता है की सांसदों के गैर जिम्मेदार रवैय्ये के कारण भविष्य में हंगामा हो जाने पर हम लोग लोक-सभा की कार्यवाही सीधे न देख सकें। सांसदों के अनुचित व्यवहार को जनता तक पहुँचने से रोकने के लिए जहाँ एक ओर लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार ने इस बारे में विचार विमर्श भी करना शुरू कर दिया है वहीं कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि यह जनता को उसके हक से वंचित करने की बात है। किसी भी परिस्थिति में सीधा प्रसारण जारी रखने का आदेश पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का था, उनका मानना था कि जनता को यह जानने का पूरा हक है कि उसके सांसद सदन में कैसे बर्ताव करते हैं। इस बात का कुछ सांसदों ने फायदा भी उठाया अपने नेताओं के सामने जो उस समय सदन में नहीं होते अपनी निष्ठा को जताने के लिए ? क्या सांसद यह भी नहीं समझ सकते कि इस तरह की घटनाएँ जनता के सामने उनकी छवि को धूमिल ही करती हैं ? अब जब मुफ्त में प्रचार पाने का तरीका हो तो कोई भी लोभ संवरण नहीं कर पता है तो हमारे सांसद भी तो हम आप के बीच से ही तो वहां तक जाते हैं। पूरी तरह सेप्रतिबंध तो उचित नहीं हो सकता है हाँ एक बात इन उत्साही सांसदों को ऐसे आचरण से रोक सकती है कि यह प्रसारण सीधा न होकर ५ मिनट देर से किया जाए जिससे यह समझने का मौका भी मिल सके कि कब प्रसारण को रोक देना है। इस प्रक्रिया से जहाँ सीधे होने वाले शोर शराबे से बचा जा सकेगा जो केवल सीधे प्रसारण के कारण ही बहुत देर तक खिंच जाता है क्योंकि कोई भी नहीं चाहता कि नेता के सामने उसके नंबर घट जायें। निश्चित ही जनता को यह अधिकार है कि वह अपने सांसदों के व्यवहार को सदन में भी परखे पर इसके लिए बिना बात के हंगामे को यह देश अब और नहीं झेल सकता। महत्वपूर्ण बिल कितनी आसानी से पारित कर दिए जाते हैं और उन पर ठोस बहस कोई भी नहीं करना करवाना चाहता तो देश के विकास के लिए कैसे कहा जा सकता है कि योजनाओं में खामियां नहीं रहेंगीं ? आज जब कमियों को खोजने के बजाय हंगामे में ही समय कट जाता है तो किस तरह से कुछ ठीक और अच्छा हो सकेगा यह भी अभी देखना ही है । फिल हाल तो इस हंगामे के कारण जनता अपने सांसदों की कुछ करतूतें अब भविष्य में शायद न देख पाए।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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