आज लखनऊ से छपने वाले दैनिक हिन्दुस्तान समाचार पत्र ने ग्रामीण गारंटी योजना में हो रहे घोटालों के बारे में एक रिपोर्ट छपी है। जिसमें सीतापुर जनपद में जिला सहकारी बैंक के कर्मियों द्वारा मजदूरों के खाते खुलवाने में मचाई गई लूट का खुलासा किया गया है। आज देश में भ्रष्टाचार की हालत ऐसी हो चुकी है की कोई भी कुछ भी करने में डरता नहीं है। एक दिन में १०० दिन की मजदूरी का भुगतान कर दिया गया, खाते खोलने के लिए बैंक के बाहर के कर्मचारियों ने लेज़र तक पर ख़ुद ही खाते खोल कर मजदूरों के फर्जी आंकडे भर दिए, अंगूठा लगा कर एक बेहद अच्छी सरकारी योजना को ही अंगूंठा भी दिखा दिया।
यहाँ पर सवाल यह उठता है की आख़िर किस तरह से सरकारी कोष को इन निकम्मे भ्रष्ट कर्मचारियों और नेताओं से बचाया जाए ? दिल्ली और लखनऊ में बैठी सरकारें योजनायें ला तो सकती हैं पर किसी भी स्तर पर इनके क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व तो नीचे स्तर के प्रशासन को ही करना है। आज के समय में भ्रष्टाचार इतने निचले स्तर तक घुस चुका है कि इसे आसानी से दूर करना सम्भव नहीं है। देश में जब इतने सारे कानून मौजूद हैं तो भ्रष्टाचारियों के लिए अलग से कुछ कानून होने चाहिए और उनकी सुनवाई भी त्वरित न्यायालयों में ही होनी चाहिए। आरोप साबित होने पर उनसे पूरी रकम वसूलने की व्यवस्था तथा उचित सज़ा भी होनी चाहिए। देश में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए किए जा रहे बहुत सारे प्रयास केवल कागज़ी ही साबित हो रहे हैं, आज हम सब को सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाना ही होगा कि वह कुछ अलग तरह से व्यवस्था करे और जहाँ भी सरकारी पैसा आता है उसकी निगरानी के लिए स्थानीय स्तर पर संभ्रांत नागरिकों का एक समूह बनाया जाना चाहिए जिससे नेताओं को पूरी तरह से दूर रखा जाए क्योंकि आम आदमी जो नेता से दूर है निष्पक्ष होकर काम कर सकता है इस काम के लिए बाकायदा एक प्रक्रिया भी अपनाई जानी चाहिए जिससे यह समूह वास्तव में कुछ ठोस कर सके। देश हमारा है तो आख़िर हम कब अपने देश के बारे में सोचना शुरू करेंगें ? हर जनपद में अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों की सेवाओं को भी इसमें लिया जा सकता है और मैं कह सकता हूँ कि देश के लिए सभी कुछ ना कुछ अवश्य करेंगें। आख़िर देश के नागरिकों के पैसे को मात्र कुछ अधिकारियों/ नेताओं के खाने के लिए पूरी तरह से तो नहीं छोड़ा जा सकता है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सुझाव अच्छा है ..!!
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