कल हुई मतगणना में पूरे देश में सभी सत्ताधारी दलों ने अपनी इज्ज़त बचा ली क्योंकि लगभग सभी दलों ने अपने अपने राज्यों में अपनी छवि के अनुसार प्रदर्शन करके अपनी पकड़ दिखा दी। इन उप चुनावों में यह बात भी दिखाई दी की जहाँ केन्द्र के लिए फ़ैसला लेते समय जनता ने राष्ट्रीय पार्टी की ओर देखा था पर जब राज्यों की बात आती है तो जनता का भरोसा केवल अपने क्षेत्रीय दलों पर ही अधिक होता है। देश में कुछ लोगों को लगता है कि यहाँ पर जनता लोकतंत्र के लायक ही नहीं है पर जब जनता इतने परिपक्व राजनैतिक निर्णय लेकर इनको भौंचक्का कर देती है तो ये लोग बगलें झाँकने लगते हैं। देश में जो व्यवस्था १९४७ में अपनाई गई थी आज भी वह बहुत पूर्ण है हाँ कहीं पर कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के कारण इसका दुरूपयोग भी कर लिया है पर इससे पूरी व्यवस्था पर उंगली तो नही उठाई जा सकती। हर राज्य में सरकारें अपने वोट बटोरने के लिए कुछ अलग करने की कोशिश करने का काम करती रहती हैं। फिर भी देश के लोगों को उन योजनाओं में से भी बहुत कुछ मिल जाता है ? आज इस बात पर विचार करने की ज़रूरत नहीं है कि लोकतंत्र का स्वरुप क्या हो ? विचार इस बात पर करने की ज़रूरत है कि इस लोकतंत्र का चीर हरण करने में जुटे नेताओं को इन हरकतों से कैसे दूर रखा जाए ? व्यवस्था में कमी नहीं होती हम अपने स्वार्थ के लिए इसमें फेर बदल करने से नहीं चूकते हैं ? तो इसमें क्या व्यवस्था का की कमी है ? नहीं कमी हमारे में है .... हम ही हैं इस व्यवस्था को ध्वस्त करने में लगे हुए हैं। आज हमें देश में कुछ नया करने की आवश्यकता नहीं है बस ज़रूरत है तो केवल अपने सुधरने की ......
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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