फिल्म अभिनेता इमरान हाशमी ने यह कहकर सबको चौंका दिया था की मुंबई की एक सोसाइटी ने उन्हें सिर्फ़ इसलिए मकान देने से मना कर दिया क्योंकि वह मुस्लिम हैं ? क्या इस देश में कोई यह कह सकता है कि मुसलमानों के साथ आम तौर पर इस तरह का व्यवहार किया जाता है ? कोई भी नहीं तभी तो इमरान की बातों का विरोध सबसे पहले मुस्लिम फिल्म अभिनेताओं द्वारा ही किया गया। खान कलाकारों ने इस तरह का आरोप लगाने वालों की मंशा पर ही संदेश जाता दिया क्योंकि वे जानते हैं कि इस देश में वे केवल मुसलमाओं के अभिनेता नहीं हैं। दिलीप कुमार को किसी ने कभी मुस्लिम होने के कारण कम पसंद किया ? मोहम्मद रफी के गानों को क्या किसी ने इसलिए सुनने से मना कर दिया कि वे एक मुस्लिम हैं ? किसी भी फिल्म की स्टार कास्ट देख लें वहां पर हिन्दुओं या अन्य लोगों की अपेक्षा मुस्लिम ही अधिक मिलेंगें तो फिर क्या सोच कर इमरान ने इस तरह का बेहूदा मज़ाक किया और अब वे यह भी बेशर्मी के साथ कह रहे हैं कि अब उनका सोसाइटी से विवाद सुलझ गया है ? इसका मतलब तो यह है कि अगर कोई विवाद था भी तो उसे धर्म के चश्में से देखने की ज़रूरत ही क्या थी ? इमरान कोई नया चेहरा भी नहीं हैं कि उन्हें कोई पहचानता ही नहीं हो ? अब विवाद चाहे जितना भी सुलझ जाए पर इमरान ने जाने अनजाने में भारत की छवि को तो धक्का पहुँचा ही दिया कि यहाँ पर अल्प संख्यकों के लिए बहुत सारी मुश्किलें हैं ? इमरान को धन्यवाद देना चाहिए अपने भाग्य को कि वे इस धरती पर पैदा हुए वरना दुनिया में बहुत सारे मुल्क तो ऐसे भी हैं जहाँ के कानून ही पता नहीं क्यों अपने ही नागरिकों का जीना हराम किए हुए हैं।
आज केवल इमरान के शर्मिंदा होने या यह कह देने से मामला ख़त्म नहीं हो सकता कि अब विवाद सुलझ गया है अल्पसंख्यक आयोग को उनकी झूठी शिकायत के लिए उनके खिलाफ कोई कार्यवाही भी करनी चाहिए जिससे भविष्य में कोई इमरान जैसा दुस्साहस ना करे और वास्तव में ही कोई मसला होने पर इस तरह के मामले में धर्म को आगे लाये।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
लोकतंत्र में कुछ भी कह सकते है क्योकि यहाँ बोलने सुनाने सुनने किसी भी प्रकार की बयानबाजी करने की पूरी आजादी है . इस तरह की बयानबाजी करना महज लोकप्रियता अर्जित करने का तरीका है
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