आखिरकार ईरान ने यह स्वीकार कर ही लिया कि वह परमाणु मसले पर जारी गतिरोध पर सुरक्षा परिषद् के ५ सदस्यों समेत जर्मनी से भी बात करने को तैयार है। दुनिया के असुरक्षित होते जाने में परमाणु क्षमता का विस्तार बहुत बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है। इस स्थिति में यदि ईरान वास्तव में कुछ ठोस कदम उठता है तो इससे सारी दुनिया के माहौल पर असर तो पड़ेगा ही । आज के युग में जब बहुत सारी बातों के लिए हर देश एक दूसरे पर निर्भर है तो कोई भी देश अलग थलग रहकर अपने नागरिकों के अधिकारों का हनन ही करता है। विश्व में बदलाव व विकास की जो बयार चल रही है उसमें कोई भी देश अपने को अलग कैसे रख सकता है ? यह भी सही है की यह अलगाव देश के नागरिकों में कुंठा पैदा करता है जिसका उपयोग वहां के शासक जनता को भड़काने में करते रहते हैं। आज आवश्यकता है कि सारे मसलों को मिलकर सुलझाने का प्रयास किया जाए जिससे कुछ ठोस काम सामने आ सके। हो सकता है कि चुनाव के बाद अहमदीनेजाद पर आंतरिक दबाव भी पड़ रहा हो क्योंकि अब उनकी स्थिति पहले जितनी मज़बूत नहीं रही है तभी वी बातचीत की मेज़ तक आने को राजी हो गए हों ? फिलहाल बात चाहे कुछ भी हो जब बातचीत का माहौल ईरान ही बनाना चाहता है तो इस्राइल को भी कुछ संयम से काम लेना चाहिए क्योंकि अभी हाल में ही उसने भी कहा है कि वह ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला कर सकता है। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी ही है पर इस बातचीत में कुछ ठोस सामने आ जाए तो वह एशिया और विश्व के लिए हितकर ही होगा।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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