कल जिस तरह से चीन ने फिर से अरुणाचल प्रदेश के बारे में अपना मत व्यक्त किया उससे तो यही लगता है कि उसके मन में अभी भी इस भूभाग को हड़पने का मंसूबा है। जब एक बार वह इस भाग को भारत के कब्जे में मान ही चुका है तो बार बार इस तरह की हरकत करने से उसे क्या मिलने वाला है यह समझ से परे है ? कहीं ऐसा तो नहीं पाकिस्तान को अपना मित्र मानने वाला चीन आज कल पाक पर पड़ने वाले भारतीय दबाव को कम करने के लिए ही ऐसा कर रहा हो कि भारत का ध्यान पाक की तरफ़ से हट कर कुछ चीन की तरफ़ भी हो जाए और शायद पाक पर कुछ नरमी बरती जा सके। फिल हाल कुछ भी हो आज के समय में हम सभी को इस बात के लिए भी तैयार रहना चाहिए कि जब तक चीन के व्यापारिक हित सुरक्षित रहेंगें तब तक वह शायद ही भारत पर हमला करने की बात सोचे पर किसी भी स्तर पर उसे यह लगता है कि अब उसका आर्थिक नुकसान हो रहा है तो वह इसी तरह का कोई मुद्दा उठाकर युद्ध भी छेड़ सकता है। इतिहास ने चीन को एक विस्तारवादी देश तो बना ही दिया है जो अपने आलावा कुछ मामलों में किसी की भी नहीं सुनता है। भारत सरकार ने भी जिस तत्परता से अपनी कड़ी आपत्ति जाता दी है वह बहुत ही आवश्यक थी क्योंकि इस तरह के मुद्दों पर चुप रहने से यह संदेश चला जाता है कि भारत एक सौम्य देश है। यह सही है कि हम अपने आप ही सौम्य बने हुए है परन्तु किसी भी दशा में हमारी सौम्यता को हमारी कमजोरी नहीं समझा नज चाहिए। आज का भारत १९६२ वाला भी नहीं है जब हम बिना तैय्यारियों के ही युद्ध में कूद गए थे और हमारे सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी। अच्छा हो कि चीन भी अपनी तरफ़ से कुछ संयम बरते और इस क्षेत्र में शान्ति बनाये रखने में भारत का सहयोग करे।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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