अपनी श्री नगर यात्रा के दौरान चिदंबरम ने जिस तरह से कहा कि सरकार ठोस बातचीत में विश्वास करती है और जब कुछ सकारात्मक किया जाना होता है किसी बहुत विवादित मुद्दे में तो कुछ बातों को पीछे छोड़ना ही होता है। केवल ज़बानी कसरत करने से किसी भी समस्या को सुलझाने के बजाय उलझाया ही जा सकता है। सरकार का रुख़ पूरी तरह से साफ़ है कश्मीर में स्थायी शान्ति के लिए सरकार अलगाव वादियों से भी बात करने को तैयार है। देश महत्वपूर्ण होता है व्यक्ति नहीं । जब इस तरह से सोचा जाएगा तभी कुछ सही रास्ता निकल पायेगा। चिदंबरम के इस बयान के तुंरत बाद हुर्रियत ने भी कहा है कि हम भी फोटो खिंचवाने के बजाय कुछ ठोस करना चाहते हैं। चिदंबरम ने कहा कि सरकार वार्ता से नहीं घबराती है और किसी से भी सकारात्मक बात करने में कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि बातों में प्रक्रिया को उलझाने की ज़रूरत नहीं होती यदि सभी मिलकर कुछ अच्छा चाहते हैं तो सरकार सभी पक्षों की बात सुनकर उन पर राय बनने का काम करने को तैयार है। कश्मीर पर बात चीत में गुपचुप होगी मीडिया की चमक में कुछ ठोस नहीं किया जा सकता जब कोई समाधान दिखाई देगा और सभी की सहमति होगी तभी उसे सबके सामने लाया जाएगा।
अच्छा है कि वर्षों से चलने वाली इस प्रक्रिया पर नए सिरे से विचार किया जाए और देश के सबसे पुराने विवाद को बात चीत से सुलझाया जा सके। जब सरकार अपनी मंशा ज़ाहिर कर चुकी है तो अब कश्मीरी समूहों को भी इस पर विचार करना चाहिए क्योंकि ऐसे अवसर बार बार नहीं आते हैं और कोई घटना सरकार पर बात रोकने के लिए दबाव भी बना सकती है।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
वास्तविकता तो यह है कि दोनों ही देशों की सरकारें इस मुद्दे को बनाए रखना चाहती हैं।
जवाब देंहटाएंधनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!