मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

एक बाढ़ खामोश सी...

कुछ अजीब सा लगता है न सुनकर की अब कहाँ बाढ़ है ? इसमें कुछ भी अजीब नहीं है..... ज़रा जाकर देखिये कि उत्तर प्रदेश में तराई के जिले किस तरह से मनुष्य के द्वारा लायी गई बाढ़ की विभीषिका को झेल रहे हैं... बाकी जगहों को तो छोड़ ही दीजिये ज़रा लखनऊ के कुछ इलाकों के बारे में ही जानकारी जुटाइये...... इसमें कुछ खास नहीं है क्योंकि इस समय आम गरीब बाढ़ को झेल रहा है पिछले साल जब गोमती ने अपनी सीमायें पार की थीं तो गोमती नगर में रहने वाले बहुत सारे मंत्रियों और अधिकारीयों के दरवाज़े तक जा पहुँची थी.... वह थी न ख़बर अब गोमती मंत्रियों के दरवाज़े पर हो तो ही ख़बर बन सकती है गरीब को कोई हक ही नहीं है इन बातों की शिकायत करने का... कौन पूछ रहा है ? खामखाँ ही अपना रोना रोये जा रहे हैं कि बाढ़ आ गई है...... किसने कहाँ था कि जाकर नदियों के मुहाने में रहने लगो ? हर साल बाढ़ राहत का माल खाने की आदत जो है कहीं किसी ऊंची जगह पर क्यों नहीं चले जाते ? अब सरकार उपचुनाव देखे कि तुम्हारी बाढ़ ? नाक बचाने का सवाल आ जाता है चुनावों में तुम झोपड़ी में रहो या खुले में तुम्हारी नाक तो कट नहीं रही फिर क्यों हल्ला मचाते हो ? बाढ़ जब तक हवाई दौरे करने वाली न हो तब तक नेता भी नहीं दौरा करते... तुम भी न टुच्ची सी बाढ़ के लिए परेशान हो रहे हो ? अब कैसे समझाएं जब नेता सड़क पर होते हैं तो उन्हें सब दीखता है पर जब सत्ता की ऊंची कुर्सी पर सवार हो जाते हैं तो कुछ दिखाई नहीं देता ... तुम तो उम्मीद लगाये हो कि उनको तुम्हारी बाढ़ दिख जाए..... अरे भला हो मौसम का कि इस बार सरकारी कर्मचारियों को एक टिकट में दो खेल देखने को मिल गए .... उत्तर प्रदेश में पहले सूखा राहत चला उसमें तो गरीब का ही आटा गीला हो गया और अब बाढ़ राहत में गीले आटे को सुखाने की कोशिश जारी है.... तुम जनता हो केवल ५ साल में वोट देकर चुप हो जाया करो विपक्षियों की तरह बहुत सारे सवाल मत पूछा करो... कई बार तो शक होने लगता है कि कहीं विरोधी दल से मिले तो नहीं हो ? चुप चाप ज़मीन को अपना बिस्तर बनाओ और आसमान को ओढ़ कर सो जाओ क्योंकि इससे ज़्यादा के तुम हकदार भी नहीं हो और प्रकृति के पास रहकर तुम्हारी सेहत भी ठीक ही रहेगी......

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

4 टिप्‍पणियां:

  1. सही लिखा है आपने........
    मंत्रियों और अधिकारियों के घर में पानी पहुंच जाये..तभी उनकी चेतना कुछ जाग्रत होती है... इस बार तो वो भी नहीं हुई....
    ब्रजेश द्विवेदी.......

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  2. प्रकृति के साथ जितनी भी ज्‍यादतियां हो रही है .. उसका हर दुष्‍परिणाम गरीब ही तो भोग रहे हैं ..मंत्रियों और अधिकारियों को एक दिन भी इस प्रकार के कष्‍ट का सामना करना पडे .. तब उन्‍हें समझ में आए !!

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  3. गरीब का आटा तो गीला ही होना है ...!!

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  4. चुप चाप ज़मीन को अपना बिस्तर बनाओ और आसमान को ओढ़ कर सो जाओ --बस सोने जा रहा हूँ महाराज!!

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