मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

चीन का आक्रामक रुख

कल एक चीनी अख़बार ने जिस तरह से यह लिखा की भारत १९६२ का सबक भूल गया लगता है वह निश्चित ही चिंता का विषय है क्योंकि चीन जैसे देश में जहाँ पर सरकार हर बात पर चाबुक चलाती है कोई अख़बार बिना सरकारी अनुमति के इतनी बड़ी बात नहीं लिख सकता है। अच्छा हो कि चीन अपनी नीतियों में बदलाव करके इस क्षेत्र की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करे न कि बात को उलझाने की कोशिश कि जाए। इस इलाके में शान्ति बनी रहे इस बात का उत्तरदायित्व दोनों देशों का है इसमें ऐसा कैसे चल सकता है कि भारत तो नियमों का पालन करता रहे और चीन चाहे कुछ भी कहता रहे। वैसे भी आज के युग में जब भारत-चीन व्यापर निरंतर ऊंचा ही उठता जा रहा है तो किसी भी देश के लिए युद्ध के बारे में सोचना भी सम्भव नहीं है। फिर भी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारत से मिल रही कड़ी टक्कर के कारण चीन पर पड़ने वाले प्रभाव का दूरगामी असर होना ही है और उस समय चीन कोई भी हरकत कर सकता है। इस समय चीन ने यह सोचा था कि उसकी घुड़की के बाद भारत सरकार दलाई लामा को तवांग नहीं जाने देगी पर ख़ुद मनमोहन पहले ही वहां हो आए और चीन को यह संदेश दे दिया कि भारत के किसी भी भाग में भारत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति जा सकता है इसको मुद्दा न बनाया जाए। हाँ मनमोहन कि अरुणाचल यात्रा के दौरान उन्हें भी तवांग जाना चाहिए था जिससे चीन को यह संदेश भी मिल जाता कि उसकी सीमा कहाँ पर ख़त्म हो जाती है। प्रणब और थरूर ने जिस तरह से इस मसले पर अपनी राय दी है वह सही है कि भारत अपनी सीमा में कुछ भी करने को स्वतंत्र है।

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. चीन सही ही तो कह रहा है। हम ही भूले बैठे हैं।
    ऐसा पड़ोसी तो अच्छा ही है - चेता तो रहा है ? कमीने पाकिस्तानी और बंगलादेशी तो इसकी जरूरत भी नहीं समझते कि लतखोरों को चेता दें ताकि पिटने की तैयारी वगैरह कर लें।
    चीन जिन्दाबाद। हम तैयार हैं। लात खाने को अरुणांचल ठीक रहेगा।

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