आज के युग में जब शिक्षा का बहुत अधिक महत्त्व है तो भी भारत में शिक्षा पर खर्च किए जाने वाले पैसे पर कोई भी ध्यान नहीं देना चाहता है। देश में मध्याह्न भोजन एक ऐसी योजना थी जिसके माध्यम से सारे देश को साक्षर किया जा सकता था पर आज यदि इस योजना की प्रगति पर नज़र डालें तो शायद यह अपने हिस्से के ४० % काम को भी नहीं कर पाई होगी। बहरहाल सरकारी आंकडें कुछ भी कहें कुछ हद तक साक्षरता दर में बढ़ोत्तरी तो हुई है पर जिस स्तर पर यह होना चाहिए था वह नहीं हो पाया है। यदि इसके मूल में जाकर देखें तो भ्रष्टाचार ही हर बात की जड़ में बैठा दिखाई देता है। एक ऐसी योजना जो गँवई गाँव के लोगों को जीने के बेहतर अवसर प्रदान कर सकती थी उसमें भी इस कदर घुन लगा दिया की योजना बनाने वाले भी सकते में आ जाए। कोई भी योजना अच्छी या बुरी नहीं होती है उसको किस हद तक क्रियान्वित किया जा रहा है या उसको कितनी सफलता से लागू किया जा रहा है यही अधिक महत्वपूर्ण है। आज भी जब तक देश में साक्षरता का स्तर नहीं बढ़ता है तब तक किसी भी तरह की शिक्षा की बात करना ही बेईमानी होगी। जब तक अधिकांश लोग पढ़ाई के लाभ नहीं जानेंगें तब तक उनके मन में पढ़ने की ललक नहीं जागेगी। पढ़ने के लिए साधन तो जुटाए जा सकते हैं पर किसी को जबरन पढ़ाया तो नहीं जा सकता है। फिर भी देश के कुछ राज्यों की प्रगति देख कर अन्य राज्यों को भी कभी न कभी यह सोचना ही होगा की बिना गुणवत्ता परक, रोजगारपरक शिक्षा के कुछ भी होने वाला नहीं है। देश को आगे ले जाने में जब तक सारे देश वासियों का सहयोग नहीं होगा तब तक कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमी तो अवश्य रह ही जाएगी। आशा है की कुछ इस तरह से सोचा जाए की साक्षरता के साथ ही देश में जीवन स्तर में भी सुधार हो सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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