आजकल देश में कुछ ऐसा होता जा रहा है कि भ्रष्टाचार बढ़ाने वाली चीज़ें पता नहीं कहाँ से खोज ली जाती हैं ? उत्तर प्रदेश का सीतापुर जिला जो कि मेरा गृह जनपद भी है.... इंदिरा जी ने रायबरेली के सूखे खेतों तक पानी पंहुचाने के लिए शारदा सहायक परियोजना की परिकल्पना कर उसे साकार भी किया था। आज यह नहरें ही अपने मार्ग में पड़ने वाले कई जिलों में भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई हैं। जैसा कि सभी को पता हैं कि सीधे शारदा नगर से निकली ये नहरें पहाड़ों से बड़ी मात्रा में बालू अपने साथ में बहा कर लाती हैं जिस कारण से इनमें बालू का जमाव बहुत तेज़ी से होता है। बस यहीं से अवैध उत्खनन का खेल प्रारम्भ हो जाता है। स्थानीय नेता, अधिकारियों का गठजोड़ इस बालू के खेल में भी अपने लिए माल निकाल लेता है। एक पुरानी कहावत कही गई है कि बालू से तेल निकलना असंभव होता है पर यहाँ पर बालू से किस तरह से तेल क्या सोना निकला जा सकता है यह कोई यहाँ आकर ही सीख ले। आख़िर क्यों इस तरह से भ्रष्टाचार अपने चरम पर है ? कारण बहुत साधारण है सरकार के पास इतने काम हैं कि वह चाह कर भी ऐसे कामों पर ध्यान नहीं दे सकती है ? यदि नहर विभाग ही इन नहरों से बालू निकालने का ठेका अपने स्तर से देना प्रारम्भ कर दे तो इस भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकती है पर क्या कोई ऐसा करना भी चाहता है ? शायद नहीं क्योंकि इस खेल में जो मज़ा आ रहा है वह तब नहीं आ पायेगा। सरकार अगर कुछ नहीं कर सकती तो इस खनन को ही वैध बना दे उसे केवल इतना ही करना होगा कि एक अधिसूचना जारी कर दे कि इन नहरों के किनारे रहने वाले लोगों को जब जितनी मात्रा में बालू चाहिए वो ले सकते हैं। इसमें भी एक नया खतरा है कि नेता नामक प्राणी यहाँ पर भी अपनी नाके बंदी कर कुछ वसूलने के फेर में पड़ जाएगा। सरकार को इस बालू को नहर से निकालने का ठेका इस शर्त पर दे देना चाहिए कि सफाई कर दी जाए और सरकार को कोई पैसा नहीं चाहिए। इस स्थिति में लाभ के चक्कर में बहुत से ठेकेदार यहाँ से बालू निकालने के लिए आ जायेंगे। कानून की समस्या न हो इसलिए यहाँ पर ठेकेदारों को इलाका भी बाँट कर दे दिया जाना चाहिए। फिल हाल तो नहरों के किनारे रहने वाले लोग भी ८०० रूपये देकर एक ट्राली बालू खरीद कर अपना काम चला रहे हैं।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अपने देश में तो अगर नेताओं का बस चले तो सांस लेने पर भी नाकेबंदी कर देंगे .......... जय हो राजनीति ......
जवाब देंहटाएं