आज देश मुंबई हमलों की पहली बरसी पर नम आंखों से शहीदों और आम नागरिकों को याद कर रहा है जिन्होंने निर्दोष होते हुए भी अपनी जान गवां दी। विचारधाराओं में मतभेद हमेशा से ही संघर्ष को जन्म देते रहे हैं पर किसी पर जबरन कुछ थोपना और उनसे मनवाना आज कल आतंकियों की पहली पसंद बना हुआ है। दुनिया में कुछ भी होता रहे पर चंद लोग अपने में ही खोये हुए पता नहीं किस दुनिया में जीते रहते हैं ? आज जब विकास के नए मानदंड स्थापित किए जा रहे हैं तब भी किसी भी तरह का विस्तार वाद कब तक टिक पायेगा यह सोचने का विषय है। एक समय था जब रूसी साम्यवाद के चलते दुनिया दो हिस्सों में बंट गई थी कोई भी नहीं जानता था कि हथियारों का ज़खीरा कब किस देश को तबाह कर देगा ? समय के साथ वह सारा भय समाप्त हो गया। आज अमेरिका अघोषित शक्ति के रूप में दुनिया के सामने है पर वह भी जिस तरह से दुनिया के संसाधनों पर कब्ज़ा जमाना चाहता है उस कारण भी मध्य पूर्व और दुनिया के बहुत से हिस्सों में अलगाव वाद और आतंक अपने चरम पर है। ऐसा नहीं कि अमेरिका हमेशा ही ग़लत होता है पर जब एक ग़लती हो जाती है तो उससे प्रभावित लोगों में विद्रोह भड़काना आसान हो जाता है । यदि यह विद्रोह किसी भी स्तर पर धर्म या जाति विशेष से जुड़ जाए तो इसकी घातकता बहुत अधिक हो जाती है। संसार के सभी देशों को इस बात पर अधिक ध्यान देना होगा कि कहीं कोई इन बातों का ग़लत फायदा न उठाने लगे ? फिल हाल मुंबई के हमले ने भारत को एक बार अपने आप सोचने पर मजबूर कर दिया साथ ही यह भी साबित हो गया कि यदि हम अपनी सुरक्षा नहीं करेंगें तो कोई भी हमारे साथ नहीं खड़ा होगा। जब हम ख़ुद ही अन्याय के खिलाफ खड़े होना सीख लेंगें तो सभी हमारे जज़्बे को सलाम करेंगें और साथ भी देंगें। भारत ने २६/११ के बाद देश की आन्तरिक सुरक्षा के बारे में बहुत कुछ किया है पर जब तक आम नागरिक इन बातों के लिए अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझेगा तब तक कोई भी व्यवस्था ठीक से नहीं चल सकेगी। आज हम सभी को यह देखना होगा कि भविष्य में इस तरह के हमलों से बचने के लिए सभी को किस तरह से साथ में रहकर प्रशासन की मदद करनी चाहिए ।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
बिलकुल सही कहा आपने । 26/11 के शहीदों को शत शत शत नमन
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