लोकसभा में मुंबई हमलों पर चर्चा करते समय विपक्ष के नेता आडवाणी ने जिस तरह से सरकार पर आरोप लगाया कि वह अभी तक मुंबई पीड़ितों के लिए कुछ भी नहीं कर पाई है उससे लगता है कि देश के नेता हर मामले पर राजनीति करने से नहीं चूकते हैं। देश में जब ग़म भरा गुस्सा हो तो कम से कम नेताओं को जनता की नब्ज़ के बारे में सोचना चाहिए कि ऐसे अवसर पर किस तरह से काम करना चाहिए। देश में हर बात पर नेता अपने नंबर बनाने में लग जाते हैं पर वे यह भूल जाते हैं कि नेता की याद कम होती है पर अब जनता की यादें उतनी धुंधली नहीं रह गई हैं। उनकी इस बात का जवाब देते समय प्रणब मुखर्जी ने आडवानी पर राजनीति करने का आरोप लगाया उसे किसी भी स्तर पर ग़लत नहीं कहा जा सकता है। अच्छा होता कि सांसद से एक ऎसी आवाज़ आती कि देश के नेता भी इस बात पर एक हैं ? पर दुर्भाग्य है कि ये नेता जो हम जनता के पैसे पर ऐश करते रहते हैं और हमारी बात और भावना की कोई कद्र नहीं करते हैं। आज के दिन देश को हर स्तर पर एक होना चाहिए था पर नेता अपनी चमकाने में यह भूल जाते हैं कि देश उनको भी देख रहा है ? इस साल हुए आम चुनाव में जनता ने विपक्ष के बहुत सारे कयासों को झुठला दिया था और कांग्रेस को फिर से मौका दे दिया था फिर भी कुछ लोगों से यह बात अभी तक हज़म नहीं होती है। उनको लगता है कि जनता ने कैसे आतंक के मुद्दे पर कांग्रेस की बात को मान लिया ? यह सभी जानते हैं कि इस समय देश के पास एक ऐसा गृह मंत्री है जो केवल चुपचाप काम करने में विश्वास करता है। देश को काम करने वाले नेता चाहिए बात करने वाले नहीं। अच्छा होता कि अब ये चेत जाते पर पता नहीं कब ऐसा होगा ? फिल हाल देश कि जनता तो कुछ ठोस किए जाने के लिए ही प्रतीक्षा में चुप-चाप नेताओं पर नज़र रखे हुए है।
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यानी आडवाणी को चुप रहकर मोमबत्ती ब्रिगेड का समर्थन करना चाहिये था…? या "चुपचाप काम करने वाले इफ़ेक्टिव गृहमंत्री" का उम्दा काम देखना चाहिये था, जो इतने उम्दा हैं कि न तो करकरे की पत्नी की बात का जवाब दे पा रहे हैं, न ही कामटे की पत्नी का…। बड़े दिनों बाद तो आडवाणी ने सरकार पर कुछ ठीकठाक मुद्दा आधारित हमला किया था, वह भी आपको पसन्द नहीं आया, ताज्जुब है।
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