मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

कोपेनहेगेन में सार्थक सहमति

यह अंदेशा लग रहा था कि आने वाले समय में कोपेनहेगेन कोई खास बात देकर नहीं जा पायेगा उसको झुठलाते हुए इस सम्मलेन के नेताओं ने कल यह कहा कि हम एक सार्थक सहमति की तरफ बढ़ चुके हैं वह निश्चित ही अच्छी बात है। अभी तक की वार्ताओं से यह साफ था कि विकसित देश किसी भी स्तर पर कुछ ठोस तो करना नहीं चाहते और अपनी कमियों को विकास शील देशों के मत्थे मढ़ना चाहते हैं। स्वयं ओबामा को यह अहसास हो गया कि इन उभरती हुई अर्थ व्यवस्थाओं भारत, चीन, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के बिना अब कुछ भी नहीं किया जा सकता है। अब वह समय भी नहीं रहा कि विकास शील देश इन विकसित देशों की हर बात आँख मूँद कर मान ही लें। अब विकसित देशों को भी समझ में आने लगा है कि इन देशों की अनदेखी नहीं की जा सकती है और उन्हें खुद भी ईमानदारी से उत्सर्जन मानकों को अपनाना होगा।
आज सही समय है कि विकास और उससे होने वाले ख़तरों के बारे में सभी देश साथ में बैठ कर सोचें। तभी जाकर कुछ सार्थक हो पायेगा। ओबामा ने खुद यह कहा कि उनकी इन उभरती अर्थ-व्यवस्था वाले देशों के प्रमुखों से बात हुई है जिसमें हम सभी उत्सर्जन की सीमा तापमान के अनुसार २ डिग्री तक रोक कर रखने पर सहमत हो गए हैं इस पर व्यापक विचार विमर्श के बाद पूरा खाका तैयार करने पर काम किया जायेगा जिससे इस पर सख्ती के साथ खुद ही अमल करने का मन सभी देश बना सकें। इसमें विकास शील देशों की यह बात तो काम कर ही गयी कि विकसित देशों को भी पर्यावरण के लिए अपनी ज़िम्मेदारी को समझना होगा तभी जाकर दुनिया के बारे में सार्थक तरीके से सोचा जा सकेगा।

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