भारत में पर्यटकों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार किसी भी स्तर पर काम होता नहीं दिखाई देता . इस कड़ी में ताज़ा घटना रूसी बच्ची के साथ गोवा में घटी. इस सबके पीछे देखने से हमें बहुत सी बातें ऐसी भी दिखेंगीं जिनके बारे में हम कभी सोच भी नहीं सकते. सबसे पहले तो हम सभी को मन से यह बात निकालनी होगी कि गोरी चमड़ी वाले लोग किसी दूसरी मिटटी के बने होते हैं. पश्चिमी देशों की जो छवि आम भारतीय जन मानस में है वो फ़िल्म उद्योग ने ही बनाई है. आज के समय तो सारा कुछ काफी सामान्य सा हो गया है वरना पहले विदेशियों को दिखाने का मतलब ही काम कपड़े और अधिक दिखता शरीर. इस मानसिकता के साथ जब आम जन मानस जी रहा हो तो वह किसी विदेशी के बारे में अच्छी राय कैसे रख पायेगा ?
इसके अतिरिक्त हमें अपने पुलिस तंत्र को ठीक से सुधारना होगा, जो पुलिस अपने लोगों से ही ठीक से व्यवहार नहीं कर पाती है उससे क्या आशा की जाये कि वो विदेशियों को समझेगी और उनका सम्मान करेगी ? हर स्तर पर पुलिस को समझाने की आवश्यकता है पर साथ ही उनके कार्य के समय भी निर्धारित किये जाने की भी बहुत ज़रुरत है. कोई भी २४ घंटे काम के दबाव में रहकर अपना सबसे अच्छा कैसे दे सकता है ? देश में बहुत सी अजीबो गरीब योजनायें बनती रहती हैं सरकार के पास हमेशा ही पैसों का रोना रहता है पर सुरक्षा और संरक्षा की दृष्टि से आबादी के अनुसार कितनी पुलिस होनी चाहिए यह कोई देखना भी नहीं चाहता है ? देश में काम करने वाले पुलिस कर्मियों पर काम का कितना दबाव होता है यह कोई और नहीं समझ सकता है. पुलिस का मानवीय चेहरा सामने लाने की ज़रुरत है और साथ ही आम जनता को भी यह सन्देश देने की ज़रुरत है कि किसी भी विदेशी को कहीं से भी मदद की आवश्यकता हो तो सभी को अवश्य करनी चाहिए क्योंकि जो पर्यटक के रूप में यहाँ आया है वह यदि यहाँ के बारे में अच्छी छवि लेकर जायेगा तो फिर और ज्यादा पर्यटक यहाँ आयेंगें वरना ख़राब परिस्थितियों में कौन यहाँ आना चाहेगा ? अच्छा हो कि हम सभी अपने को सुधारने का काम करें तभी पूरा समाज भी सुधार पायेगा. साथ ही पर्यटकों के साथ दुर्व्यवहार करने वालों पर कड़े कानून के तहत कार्यवाई करनी चाहिए जिससे हमारे पर्यटक भी सुरक्षित रह सकें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
दुखद एवं निन्दनीय!
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