अभी पिछले रविवार को मेरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित खुर्जा (बुलंदशहर) तक जाना हुआ . वापसी में मेरा आरक्षण दिल्ली से प्रतापगढ़ जाने वाली ५००८ पद्मावत एक्सप्रेस में था. हापुड़ स्टेशन पर जब इस गाड़ी की उद्घोषणा हुई तो मैं भी तैयार हो गया. ट्रेन के आने पर जिस तरह से एक रहस्य खुला वह अचंभित करने वाला था. आने वाली गाड़ी पद्मावत एक्सप्रेस ही थी पर उसका नम्बर ५००६ था. टी टी से पता करने पर उन्होंने बताया की यह हमारी वाली पद्मावत नहीं है वो अभी पीछे से आ रही है. डिब्बे से उतर कर जब ट्रेन पर नज़र डाली तो बी १ कोच पर ५००५/५००६ फैजाबाद/दिल्ली/प्रतापगढ़ ५००७/५००८ लिखा था. एक गाड़ी और ४ नम्बर ? खैर १ घंटे के विलम्ब से हमारी वाली पद्मावत भी आख़िरकार आ ही गयी. इस पर भी सब कुछ वैसा ही लिखा था.
जब एक जगह के लिए आवश्यकता पड़ने पर रेल विभाग दो गाड़ियाँ चलता है तो उनके नाम में "ए" जोड़ देता है. पता नहीं किस व्यवस्था के तहत ये गाड़ियाँ इस तरह से चल रही हैं. मैंने सोचा कि मेरी पद्मावत तो बाद वाली थी अगर पहले वाली लेट होकर बाद में आये और बाद वाली पहले आ जाये तो यात्रियों को समझाने के लिए रेल विभाग के पास क्या व्यवस्था है ? अब ये तो केवल ट्रेन में चलने वाला स्टाफ ही बता सकेगा कि ये पहले वाली है या बाद वाली ? इस अफरा तफरी में किसी की गाड़ी छूट भी सकती है. ट्रेन का नाम समझ में आता है कि यह जायस के प्रसिद्द कवि मालिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत के नाम पर है और संभवतः यह गाड़ी जायस होकर जाती भी हो, पर एक नाम से दो ट्रेन कैसे चल सकती हैं ? अगर प्रतापगढ़ जाने वाली पहली पद्मावत है तो दूसरी का नाम आमलकी रखा जा सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में प्रतापगढ़ जिले में आंवले की पैदावार बहुत अधिक होती है. अगर इनमें से कोई फैजाबाद जा रही है तो उसका नाम इक्ष्वाकु रखा जा सकता है या नंदीग्राम ! खैर मैं तो उस दिन बच गया पर हो सकता है कि इस अफरातफरी में किसी की गाड़ी बदल जाती हो या किसी की छूट ही जाती हो ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
छोटी छोटी परेशानियों तक पर नजर नहीं जाती इनकी तो आश्चर्य होता है.
जवाब देंहटाएंमंत्रालय को लिखिये इस बारे में.