महाराष्ट्र आतंकरोधी दल के प्रमुख रघुवंशी को हटाये जाने के पीछे बहुत सारे तर्क प्रस्तुत किये जा रहे हैं. बात चाहे जो भी हो पर क्या इतने महत्त्वपूर्ण पद पर बैठे हुए व्यक्ति को अपने विभाग की इतनी छोटी सी बात भी नहीं पता है कि मीडिया के सामने क्या बातें करनी हैं और क्या नहीं ? यह आज के समय में देश में यह स्थायी भाव बनता चला जा रहा है कि किसी भी काम के बिगड़ने पर उसके लिए बलि के मुर्गे पहले से ही तैयार रखे जाते हैं. जिन रघुवंशी पर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी थी उनको इस तरह से चलता किया जाना किस योजना का हिस्सा है ये तो सरकार ही बता सकती है पर देश से जुड़े गंभीर विषयों पर इतनी जल्दी में और अजीब से फैसले नहीं लिए जाने चाहिए. क्या जो रघुवंशी कल तक दल के मुखिया थे अब उनके अनुभवों की विभाग और देश को कोई आवश्यकता नहीं है ? क्या कारण है कि वे अब अपनी पूरी जिंदगी के अनुभव को केवल कानून व्यवस्था सुधारने में ही लगा देंगें ?
देश में किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति के अनुभवों का पूरा सदुपयोग किया जाना चाहिए पर दुर्भाग्य से हम अभी तक यह सीख नहीं पाए हैं और शायद सीखना भी नहीं चाहते हैं. हमने आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले गिल और रिबेरो को कभी भी याद नहीं किया जब भी कुछ घटा तो कदम कड़े करने का सरकारी रोना अवश्य सुनाई दिया पर इन जैसे अनगिनत अधिकारियों के अनुभवों को साझा करने की ज़हमत किसी ने भी नहीं उठाई. आतंक के खिलाफ देश लड़ रहा है कोई अधिकारी नहीं..... देश की जनता को यह भी जानने का हक है कि क्यों इन महत्वपूर्ण अधिकारियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा जाता है ?
यह केवल एक उदाहरण मात्र है अभी जल्दी में ही माला प्रकरण में उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने चहेते रहे तेज़ तर्रार अधिकारी विजय शंकर पाण्डेय को भी सचिवालय से चलता कर दिया और तो और उनके छोटे भाई जो गाज़ियाबाद नगर निगम में मुख्य नगर आयुक्त थे उसी दिन हटा दिया. देश में इन नेताओं ने पता नहीं क्या क्या कर रखा है और ये ही देश के लिए अब बहुत बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं. यह सही है कि कुछ वर्षों में केंद्र का माहौल थोड़ा सुधरा है पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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