मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 24 मार्च 2010

भाजपा और स्वामी रामदेव

भाजपा ने जिस तरह से स्वामी रामदेव से अपील की है कि वे अपनी अलग पार्टी न बनायें उससे तो यही लगता है कि मानसिक स्तर पर भाजपा ने यह मान लिया है कि उसके पास एक सीमित वोट बैंक ही है और इस नयी पार्टी से केवल उसका ही नुकसान होने वाला है. गडकरी ने जिस तरह से यह कहा कि इस पार्टी से केवल भाजपा का नुकसान और कांग्रेस का फायदा होने वाला है वह कहीं न कहीं उनकी हताशा ही दर्शाती है. इस देश में किसी को भी राजनैतिक दल बनाए का पूरा अधिकार है और इस बात से किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता है. भाजपा क्यों भूल जाती है कि इस देश की जनता ने उसको उत्तर प्रदेश समेत ४ राज्यों की बागडोर सौंप दी थी पर उस थाती को संभल पाने में भाजपा असफल रही उसने लोगों की आकांक्षाओं को पल्लवित तो किया पर उनको वास्तविकता के धरातल पर नहीं उतारा जिसके कारण उसकी दुर्दशा हुई. गुजरात,मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश  राज्य के नेता इतने ताकतवर निकले कि उन्होंने अपने दम पर वहां की जनता की परेशानियों को दूर करने की कोशिशें की जिसके फलस्वरूप उन्हें दूसरा अवसर भी मिला. केंद्र में कांग्रेस को दूसरा अवसर इसी विकास परक दृष्टि के करण ही मिला.
          आज के समय में भाजपा को केवल अपने तंत्र को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि जनता देख चुकी है कि सत्ता मिलने पर भाजपा कांग्रेस का बहुत बुरा संस्करण साबित हुई थी. पार्टी को दूसरों की पार्टी पर ध्यान देने के बजाय अपनी कमियों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि जब तक इन बातों पर ध्यान नहीं दिया जायेगा और दूसरों की सफलता से जला जायेगा तब तक कुछ भी सही होने वाला नहीं है. स्वामी रामदेव ने कभी यह नहीं कहा कि कोई एक पार्टी अच्छी या दूसरी ख़राब है, वे सदैव ही यह कहते रहे हैं कि हर पार्टी में बहुत अच्छे और बहुत बुरे लोग हैं. पता नहीं भाजपा क्यों अपने को हिन्दू वोटों का ठेकेदार मानती है ? आज के समय में जनता इन मुद्दों पर ज्यादा नहीं सोचना चाहती है क्योंकि उसके लिए रोज़ी रोटी का संकट है. धर्म किसी का भी व्यक्तिगत मामला हो सकता है पर उसके सहारे कोई दुकान बहुत दिनों तक नहीं चल सकती है. अच्छा हो कि देश के राजनैतिक दल इस बात को समझने का प्रयास करें और साथ ही यह भी देखें कि बात देश के विकास की हो, समाज के विकास की हो, पिछड़ों के विकास की हो.... तभी नए राजनैतिक दल नहीं बनेंगे और कम से कम स्वामी रामदेव जैसा प्रभावशाली व्यक्ति यदि व्यवस्था से संतुष्ट होगा तो वह सत्ता से दूर ही रहेगा. देश में पहले भी चाणक्य ने दिशा देने का काम किया है और आज भी यह काम देश के संत देश के गुरु बनकर कर सकते हैं.     

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

7 टिप्‍पणियां:

  1. धर्म और राजनिति अब कोई पहेली नहीं रह गयी है.बाबा रामदेव भी अब पहेली बनते जा रहे हैं.....
    ..............
    विलुप्त होती... नानी-दादी की बुझौअल, बुझौलिया, पहेलियाँ....बूझो तो जाने....
    .........
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_23.html
    लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....

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  2. बाबा रामदेव का अर्थशास्त्र जोकरई से ज़्यादा कुछ नहीं है. BJP का क्या है, दोनों एक ही थैली के है जब वोट मांगने की आती है तो

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  3. भाजपा तो खैर है ही राजनितिक पार्टी !!पर बाबा रामदेव को क्या जरूरत आ पड़ी है पार्टी बनाने की!योग को बिजनेस बनाने के बाद शायद अब अपने करोड़ों रुपैयों को सरंक्षित करना चाहते है ...वरना एक सन्यासी का राजनीती में क्या काम ?agar वे सोचते है की उनके आने से गन्दगी दूर हो जाएगी तो ये उनका भ्रम है..

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  4. कोई कैसा भी हो, जिसे थोड़ी भी राजनैतिक समझ है वह इस बात को भाँप सकता है कि बाबा रामदेव की पार्टी सबसे पहले भाजपा का ही नुकसान करेगी। बाबा तो खैर खुदमुख्त्यार हैं, जो चाहे निर्णय लें, लेकिन हिन्दू वोटों को बाँटने में कांग्रेस को महाराष्ट्र में भी कामयाबी मिली जहाँ उसने राज ठाकरे को खड़ा किया और शिवसेना के वोट बँटे…। यह सोचना नादानी होगी कि मुस्लिमों के वोट थोक में भाजपा को मिलेंगे, मायावती दलित वोटों को इतनी आसानी से जाने नहीं देंगी… बाकी बचे हिन्दू वोट… सारा झगड़ा इन्हीं वोटों को लेकर है… इतिहास गवाह है कि हिन्दू वोट हमेशा बँटा हुआ ही रहा है, ऐसे में रामदेव बाबा के मैदान में उतरने के बाद पहला फ़टका भाजपा को ही पड़ेगा, उल्लेखनीय है कि रामदेव बाबा का कथित "वोट बैंक" शहरी पढ़ा-लिखा मध्यमवर्ग है, ग्रामीण भारत में अभी बाबा की पकड़ नहीं बन सकी है, शहरी मध्यमवर्ग ही भाजपा का भी वोट बैंक माना जाता है, इसीलिये गडकरी को बेचैनी है। लेकिन इसके लिये भी वे खुद ही जिम्मेदार हैं… या तो वे भाजपा को सुधारें, उसमें आक्रामकता लायें, मुद्दों को सही उठायें तो शायद खोया हुआ वोट वापस मिल सके, वरना राजनैतिक नैराश्य से जूझ रहे लाखों लोग बाबा की झोली में जा गिरेंगे…

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  5. sureshjee main apki baat se sahamat hoon bhajpa ka pareshaan hona lajmi hai

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  6. योग में मिली अपार सफलता के कारण बाबा रामदेव ओवरकांफिडेंसिया के शिकार हो रहे हैं, और बाबा की महत्वकांक्षा भी इसके साथ कुलाचे मार रही हैं...बाबा रामदेव को राजनीति में आने का सप्तरंगी स्वप्न दिखाने वाले लोगों ने उन्हें घेर रखा है...भारत में संत महात्माओं को पूजने की प्राचीन परंपरा रही है, जिसका लाभ फिलहाल बाबा को मिल रहा है, लेकिन राजनीतिक की डगर थोड़ी टेड़ी है...राजनीति का शुद्दिकरण करने का दम भरने वाले बाबा रामदेव का राजनीतिकरण होने की पूरी संभावना है...फिर बाबा को तेल और तेल का धार समझ आएगा...अभी तो योग करते हुये वह स्टिरियो टाइप से बज रहे हैं...उत्साह में कभी -कभी कुछ ज्यादा ही बोल जाते हैं....वैसे राजनीति के अखाड़े में हर किसी का स्वागत है....बाबा भाजपा को डैमेज कर सकते हैं...और इस तरह से उनकी पार्टी प्रो कांग्रेस के रूप में व्यवहारिक रूप में सामने आएगी...अँदर खाते यदि बाबा को कांग्रेस का सह मिले तो किसी को चौंकना नहीं चाहिये।

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  7. कोई कैसा भी हो, जिसे थोड़ी भी राजनैतिक समझ है वह इस बात को भाँप सकता है कि बाबा रामदेव की पार्टी सबसे पहले भाजपा का ही नुकसान करेगी। बाबा तो खैर खुदमुख्त्यार हैं, जो चाहे निर्णय लें, लेकिन हिन्दू वोटों को बाँटने में कांग्रेस को महाराष्ट्र में भी कामयाबी मिली जहाँ उसने राज ठाकरे को खड़ा किया और शिवसेना के वोट बँटे…। यह सोचना नादानी होगी कि मुस्लिमों के वोट थोक में भाजपा को मिलेंगे,

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