देश में जिस तरह से रोज़ ही कहीं न कहीं ज़हरीली शराब पीकर लोगों के मरने का सिलसिला जारी है वह बहुत ही चिंता का विषय है. सरकारें शराब को सामाजिक बुराई तो मानती हैं पर राजस्व के लालच में किसी भी सरकार ने इस पर पूर्णतया रोक लगाने की बात कभी नहीं की है ? देश में काला धन भी तो बहुत है तो क्या सरकार लोगों को काले धंधे करने की भी अनुमति ठेके के माध्यम से देना शुरू कर देगी ? बात समस्या से शुरू करते हैं आज के समय में सरकार यह कहती हैं कि इस राजस्व से बहुत सारी कल्याणकारी योजनायें चलायी जाती हैं तो क्या सरकार अपने नागरिकों को जीने की मूलभूत सुविधाएँ दिलाने के लिए भविष्य में देश में चलने वाले हर बुरे काम को मान्यता देने की तरफ जाएँगी ? आज हम सभी को यह देखना होगा कि क्या किसी खास तरह कि शराब में यह घटनाएँ हो रही हैं या फिर देशी शराब पीने वाले गरीब ही इस बुराई का शिकार हो रहे हैं. अपने आस पास के माहौल पर नज़र डाल कर देखिये बहुत पास नहीं तो १५-२० किमी में ही कोई ऐसा स्थान मिल जायेगा जो देशी शराब अवैध रूप से बना रहा होगा. इन स्थानों पर पुलिस और स्थानीय प्रशासन की मिली भगत से यह काम अनवरत चलते रहते हैं और शराब का नशा बढ़ने और लागत कम करने के चक्कर में ये मुनाफ़ाखोर इसमें विषैले रसायन मिलाने से भी नहीं चूकते हैं.
अब समस्या यह है कि इसे किस तरह से रोका जाये क्योंकि आज के समय में पुलिस के पास ही इन सभी कामों का ज़िम्मा है और जिन विपरीत परिस्थितयों में पुलिस २४ घंटे काम करती है तो उसे अपने लिए कुछ अधिक की आवश्यकता होती है. ये आवश्यकताएं पुलिस कभी अपने वेतन से पूरा नहीं कर सकती है बस यहीं से हर भ्रष्टाचार की शुरुआत हो जाती है. सरकार के लोग सांसद, विधायक अपने वेतन भत्तों को तो बढ़ाने में कभी कोताही नहीं करते पर कभी इन पुलिस कर्मियों के बारे में सोचा जाता है ? सबसे पहले इनकी संख्या को जनसंख्या के अनुसार करने का प्रयास किया जाना चाहिए तभी इन पर काम का बोझ कम होगा और ये अधिक क्षमता के साथ अपना कर्त्तव्य निभा पाने में सफल हो सकेंगें. सरकार तो किसी बड़ी घटना के होने पर दो चार तबादले करके जनता का गुस्सा ठंडा करने का प्रयास करती हैं पर जिनके घरों में कोई मर गया हो उनके लिए कुछ राहत राशि की घोषणा भी करने के बाद सारी कवायद बंद हो जाती है.
अच्छा हो कि समस्या के मूल पर प्रहार किया जाये क्योंकि केवल कुछ बातों पर योजना बद्ध तरीके से काम करने पर ही समय रहते कुछ किया जा सकता है. उन मरने वालों के प्रति सही जवाबदेही यही होगी कि आगे से ऐसी किसी भी घटना को पूरी तरह से रोकने के प्रयास कर लिए जाएँ.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
हुत ही चिंता का विषय है.
जवाब देंहटाएंparsashan jimedaar hai