मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 19 मई 2010

फांसी की राजनीति

संसद हमले मामले में फंसी की सजा पाए अफज़ल की याचिका पर दिल्ली सरकार ने फैसला लेने में पूरे ४ साल लगा दिए जबकि यह मामला बिलकुल शीशे की तरह साफ़ था. दिल्ली सरकार ने बेशक दिल्ली में विकास आदि के मामलों  में बहुत कुछ किया होगा पर राष्ट्रहित से जुड़े इस मुद्दे पर जिस तरह से वहां पर चुप्पी छाई रही वह निंदनीय है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के १८ बार पूछे जाने पर आख़िर यह याचिका दिल्ली के उप राज्यपाल को प्रेषित की गयी है. देश में इस तरह की कोई व्यवस्था क्यों नहीं बनायीं जा सकती कि इस तरह की देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के बाद भी सरकारें अदालत के फैसलों पर अपनी राय ज़ाहिर करने में इतना समय न लगा सकें ? जब संसद पर हमले के आरोपी के मामले में सरकार का फैसला इतना ढुलमुल है तो अन्य मामलों में क्या उम्मीद की जा सकती है ?
      जब तक अफज़ल को फांसी नहीं दी जाती है तब तक उन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं हो सकती जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर इन्हीं की तरह के कुछ नेताओं को बचाने का प्रयास किया था जो अब इन देश द्रोहियों के खिलाफ़ कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं ? ऐसे सभी मामलों में इस तरह की अनदेखी देश के लिए घातक हो सकती है क्योंकि अज़हर मसूद जैसे लोगों को छोड़कर सरकार ने जिस नरमी का उदाहरण दिया था वह देश के लिए शर्मनाक था. फिर ऐसे लोगों की सुरक्षा पर सरकार को बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है जिसका कोई औचित्य नहीं है. अच्छा हो कि आतंकी घटनाओं में जो भी सजा प्राप्त अपराधी हैं उन्हें कानूनी प्रक्रिया और नियमों के हवाले से बचाने का कोई प्रयास नहीं किया जाये और उन सभी को जल्दी से जल्दी फांसी पर लटका दिया जाये. क्या संसद हमले में कई नेताओं के मारे जाने पर भी दिल्ली सरकार इस मामले को इसी तरह ४ साल तक लटका कर रख सकती थी ? शायद नहीं क्योंकि तब मरने वालों में शायद उनके कोई अपने बहुत खास लोग भी होते ? इस तरह के मामलों को अब देश हित के साथ जोड़कर देखना ही होगा क्योंकि जब तक देश को आगे नहीं माना जायेगा तब तक कोई भी प्रयास सफल नहीं होंगें.
        अच्छा हो कि इस तरह के मामलों में याचिका पर सुनवाई के लिए एक समय सीमा निर्धारित कर दी जाये कि अगर उससे अधिक समय लगाया जाये तो उसे अपराधी को बचाने का प्रयास माना जाये और दया याचिका को अपने आप ही आगे बढ़ा दिया जाये. नेता तो आज हैं और कल नहीं रहेंगें पर यह देश हमेशा ही रहने वाला है इस लिए किसी को भी यह अवसर नहीं दिया जा सकता कि वो देश हित के साथ अपने हितों को भी जोड़ना शुरू कर दे. 

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