मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 20 मई 2010

अमन की आशा और हम ?

भारत-पाक के नागरिकों को आपस में और करीब लाने के उद्देश्य से शुरू की गयी एक मुहिम "अमन की आशा" के तहत भारत और पाक की महिला उद्योगपतियों का एक सम्मलेन आयोजित किया गया. इस सम्मलेन में आई महिलाओं ने भारत में महिलाओं की तरक्की पर ख़ुशी ज़ाहिर की और कहा कि ऐसा नहीं है कि पाक में महिलाएं बहुत पिछड़ी हैं. उन्होंने कहा कि अगर भारत में महिलाएं आगे आ रही हैं तो पाक की महिलाएं भी उनकी तरह उनके पीछे चलकर आगे आने की कोशिश में लगी हुई हैं. यह भी सही है कि भारत में यह रफ़्तार कुछ अच्छी है पर जल्द ही पाकिस्तान में भी यही तेज़ी दिखाई देगी वे इस बात की बहुत उम्मीद रखती हैं.
     किसी पाकिस्तानी महिला द्वारा इस तरह की बात कहना निश्चित में भारत के लिए गौरव की बात है पर इस सुनहरे अध्याय के पीछे आज भी हमारे गाँवों में और कुछ हद तक शहरों में आज भी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है यह हमसे छिपा नहीं है. समाज में तरक्की तभी आ सकती है जब हम पूरी तरह से समाज को शिक्षित कर सकेंगें. निश्चित तौर पर पिछले कुछ वर्षों में हमने तरक्की के बहुत बड़े मानदंड स्थापित कर दिए हैं पर अभी भी जिस तरह का व्यवहार महिलाओं के साथ होना चाहिए आज भी नहीं हो पा रहा है. कोई भी काम जब तक दबाव से किया जाता है तब तक उसमें सही चेतना नहीं आ पाती है पर जब वही काम स्वेच्छा से किया जाने लगता है तो देखने सुनने का पूरा माहौल ही बदला हुआ सा लगने लगता है. कोई भी देश केवल तभी आगे बढ़ सकता है जब वहां के नागरिक बराबरी का दर्ज़ा पाए हुए हों और उनके मन में बेकार की शंकाएं भी ना हों.
   आज भारत में शिक्षा का स्तर सुधरा है तो उससे समाज में तरक्की तो हुई है पर महिलाओं में साक्षरता का जो स्तर हमें अब तक प्राप्त कर लेना चाहिए था अभी भी उसका इंतज़ार ही किया जा रहा है ? क्यों ? शायद इसलिए कि इन सभी मामलों में जन भागीदारी जितनी मात्रा में होनी चाहिए आज तक नहीं सुनिश्चित करायी जा सकी है और सरकारी योजनायें चलाने वाले लोग केवल अपने कागजों में खाना पूर्ति करके अच्छी से अच्छी योजना का भट्ठा बैठा देने में सक्षम हैं. अब जिस तरह से मनेरगा में समाज के वरिष्ठों का योगदान लेने की बात सरकार ने कही है उसी तरह से हर जनपद में सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों और समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों के हाथ में सभी सरकारी योजनाओं को परखने का अवसर दिया जाना चाहिए जिससे वर्तमान में अधिकारियों पर दबाव कम हो सके और वास्तव में जो भारत गाँवों में बसता है वह सही मायनों में तरक्की कर सके और सारी दुनिया हमारी इस तरक्की को देख कर कह सके कि हमने वास्तव में कुछ हासिल कर लिया है.        

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