भोपाल कांड में बहुत प्रतीक्षा के बाद जो फैसला आया उसे किसी भी तरह से संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है पर देश के कानून से आगे जाकर न्यायपालिका किस तरह से काम कर सकती है ? देश के वर्तमान कानूनों के तहत इससे अधिक सज़ा की गुंजाईश ही नहीं थी जो कुछ भी किया जा सकता था किया गया. हालांकि कई स्तरों पर इस मामले को जिस तरह की गंभीरता से लिया जाना चाहिए था कभी भी नहीं लिया गया. आज फैसला आने पर सभी तरफ से इसकी आलोचना हो रही है क्योंकि जितना बड़ा अपराध यह था उसको देखते हुए यह सज़ा बहुत कम है. अब सवाल यह उठता है कि आख़िर अब अपने देश के लोगों को भविष्य में होने वाली किसी भी दुर्घटना से बचाने के लिए क्या हमें और सख्त कानून की ज़रुरत है या फिर वर्तमान कानून में व्यापक संशोधनों की आवश्यकता है ?
यह सही है कि १९८४ के मुकाबले आज देश में औद्योगिक गतिविधियाँ बहुत बढ़ गयी हैं और ऐसे में देश में कहीं भी ऐसी कोई भी घटना घट सकती है. आज सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर होनी चाहिए कि जिस तरह से परमाणु समझौते के बाद देश में बहुत तेज़ी से परमाणु आधरित संयंत्र ऊर्जा का संकट दूर करने का प्रयास करेंगें तो उस स्थिति में कौन इस बात की निगरानी करेगा कि कहीं भी किसी केंद्र में सुरक्षा के पूरे मानक अपनाये जा रहे हैं या नहीं ? वर्तमान में जो भी ढांचा है उसके बस में यह कतई नहीं है कि वह इतने बड़े तंत्र से निपट सके. हमें किसी भी परमाणु ऊर्जा से जुड़ी दुर्घटना को ध्यान में रखते हुए अभी से यह कानून बनाने की आवश्यकता होगी कि कहीं भी किसी स्तर पर दोषी भोपाल कांड की तरह आसानी से बचकर ना निकल जाएँ ? इसके लिए देश में जो परमाणु दायित्व विधेयक बनाया जा रहा है उसमें इतने कठोर नियम बनाये जाने चाहिए कि जो तीसरी दुनिया में रहने वाले इंसानों को भी आम इंसान समझ सके केवल वही भारत में आकर इस क्षेत्र में कदम रखें ?
देश में जो हो गया सो हो गया न्याय की दुहाई देने वाला अमेरिका आतंकी घटनाओं में शामिल आतंकियों को ख़त्म करने के लिए अफगानिस्तान, इराक़ पर हमला कर देता है पर भोपाल में हुए इस लापरवाही भरे नर संहार को महज़ औद्योगिक दुर्घटना करार देता है ? क्योंकि उसके पास भारत के लचर कानूनों का फायदा उठाने के लिए पूरा अवसर हमने ही दे रखा है. बेशक देश आगे बढ़े पर इस तरह से होने वाले विकास की इबारत कितनी बदसूरत होगी यह समझा जा सकता है. अच्छा हो कि अब हम चेत जाएँ और दूसरों के हाथों में कठपुतली बनने के स्थान पर स्वयं अपने बल बूते पर इतना कुछ कर लें कि देश को किसी भोपाल कांड के आरोपी को सुरक्षित जाते हुए न देखना पड़े .....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारत के लचर कानूनों का फायदा उठाने के लिए पूरा अवसर हमने ही दे रखा है
जवाब देंहटाएंhumare hi bigade huye hai...
hum par hi istemal karege
सोनिया गाँधी के नेतृत्व में चल रही दिल्ली सरकार आखिर क्यों विदेसियो पर बार बार मेहरबान होती है? पहले बोफोर्स टॉप सौदे में दलाली खाने वाले इटली के क्वात्रोची को बचाने में सारे कांग्रेसी जुटे रहे, अब भोपाल गैस कांड के आरोपी एंडरशन को इस तरह बचाया जा रहा है मानो वह भारत सरकार का मेहमान हो, दलितों व मजदूरो का हितेषी बनने का ड्रामा करने वाले राहुल गाँधी ये बताये की हजारो मजदूर परिवारों को मौत की नींद सुलाने वाले एंडरशन को उनकी सरकार ने देश से जाने क्यों दिया, क्वात्रोची की तरह ही एंडरशन को भी बचाने की तेयारी क्यों हो रही है
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