श्रीलंका से तमिल विद्रोहियों के सफाए के बाद वहां के राष्ट्रपति महेंद्र राजपक्षे की भारत यात्रा अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आज भी भारत में श्रीलंका के तमिल राजनीति का कारण बने रहते हैं. इसमें सबसे ज्यादा उथल-पुथल तमिलनाडु में होती रहती है क्योंकि वहां के कुछ दल किसी समय और शायद आज भी तमिल विद्रोहियों के लिए सद्भावना रखते हैं. यह सही है कि श्रीलंका सरकार द्वारा चलाये गए इस अभियान से वहां पर विद्रोहियों का लगभग खात्मा कर दिया गया और अब श्रीलंका भी विकास की बातें करने में पीछे नहीं है. फिर भी इस अभियान में वहां पर रहने वाले स्थानीय तमिलों को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.
भारत सरकार ने हमेशा से तमिल हितों की बातें की हैं साथ ही श्रीलंका की अखंडता का भी समर्थन किया है. आज के समय में लोगों की भावनाओं की कद्र करना आवश्यक है पर उसकी आड़ में किसी देश का विभाजन किया जाना उचित नहीं है क्योंकि फिर कुछ लोग अपनी क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काने के लिए बहुत सारी ऐसी मांगें कर सकते हैं. एक समय भारत- श्रीलंका सम्बन्ध बहुत अच्छे हुआ करते थे पर प्रभाकरन और लिट्टे के कारण यह सम्बन्ध बहुत ख़राब होते चले गए. १९८७ में शांति समझौते से भारत को बहुत नुकसान हुआ और हमारे सैनिक पहली बार किसी दूसरे देश में किसी सैन्य अभियान में शहीद होने लगे. यह सही है कि भारत ने तमिल चीतों को बहुत बड़ा अवसर दिया था पर उन्होंने उसका उपयोग भारत के खिलाफ़ ही किया और हमारे एक युवा और प्रतिभाशाली राजनेता राजीव गाँधी की हत्या तक करवा दी.
अब समय है कि हम सभी पुरानी बातों को दरकिनार कर कानून को अपना काम करने दें और सहयोग सद्भाव के नए आयाम स्थापित करें. जिस तरह से भारत और श्रीलंका की साझा विरासत है और हमेशा से ही ये एक दूसरे के पूरक रहे हैं. उसे देखते हुए अब नए द्वार खोलने की आवश्यकता है. वर्तमान में जो भी समझौते किये जा रहे हैं उनसे आगे चलकर बहुत ही लाभ दोनों देशों को मिलने वाला है फिर भी हम सभी को सतर्क रहना होगा उन ताकतों से जिन्होंने हमारे संबंधों को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं रखी थी. विकास के साथ पर्यटन में दोनों देशों में अपार संभावनाएं हैं और बौद्ध परिपथ को सुधारने के लिए विदेशी पर्यटकों को भारत श्रीलंका के स्थलों को एक ही पैकेज में दिखाया जा सकता है जो दोनों देशों में विश्वास बहाली का बहुत बड़ा साधन हो सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आईये सुनें ... अमृत वाणी ।
जवाब देंहटाएंआचार्य जी