पाक के प्रधान मंत्री युसूफ राजा गिलानी ने कहा कि आतंक से शांति की वार्ता को अलग रखा जाना चाहिए क्योंकि इस बात का फायदा कुछ आतंकी संगठन उठा रहे हैं. इस तरह की बातें करने में पाक के नेता हमेशा से ही आगे रहे हैं. गिलानी की इस बात का क्या अर्थ लगाया जाए ? या तो उन्हें ज़मीनी हकीकत का पता ही नहीं है या फिर उनकी हालत भी शाह आलम जैसी हो चुकी है जिनकी सल्तनत केवल दिल्ली से पालम तक ही हुआ करती थी और वे हिंदुस्तान के बादशाह कहलाते थे ? कहीं वैसा ही पाक के गिलानी साथ भी तो नहीं हो चुका है ? अब पाक में आतंकियों का बोलबाला चल रहा है यहाँ तक कि पाक की पंजाब में सक्रिय राजनैतिक दल भी ज़मात-उल दावा जैसे संगठनों को कुचलने की बात करने लगे हैं ?
पाक के लिए वार्ता और शांति दो अलग बातें हो सकती हैं पर भारत के लिए कश्मीर का आतंक और पाक का उसे मिलने वाला समर्थन एक ही बात है. किस तरह से खून में सने हाथों को हाथों में लिया जा सकता है और उनके साथ बात की जा सकती है ? कश्मीर जो संसार में सबसे खूबसूरत जगह है उसका क्या हाल कर दिया है पाक ने केवल झूठे समर्थन के चक्कर में ? क्या कोई बताएगा कि जो आज़ादी कश्मीर में लोगों को है वह पाक के लाहौर में किसी को भी है ? आज तक भारत के किसी हिस्से में नमाज़ पढ़ते लोगों को किसी ने नहीं मारा है यहाँ पर सारे भारत में हर धर्म के लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं को अच्छे से निभा पा रहे हैं. किसी अन्य धर्म के व्यक्ति पर यह दबाव भी नहीं होता कि वह अपना नाम भी अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी न रख सके. पाक में कितने ईसाई और हिन्दू मुस्लिम नाम रखने के लिए मजबूर हैं ? किसके सपनों का पाक बना रहे हैं वहां के नेता ? भारत के लिए पड़ोसी होने के नाते यह चिंता का विषय हमेशा से ही रहा है क्योंकि वहां पर होने वाली किसी भी गतिविधि का बहुत बड़ा असर यहाँ भी होता है. पड़ोस में लगी आग कभी भी हमारे घर तक पहुँच सकती है.
अच्छा होगा कि पाक अब उपदेश देना बंद करे और वास्तव में अपनी जिम्मेदारियों को समझे क्योंकि उसकी तरफ से जो देर वास्तविकता को समझने में की जा रही है उसका सीधा असर वहां की जनता पर तो पड़ ही रहा है और आने वाले समय में पाक नयी पीढ़ियों को इस बात का बहुत अफ़सोस रहेगा कि जब सब कुछ ठीक किया जा सकता था तब भी कुछ नहीं किया गया और तब इस बात का सारा दोष आज के नेताओं पर मढ़ा जायेगा. पाक को यह समझना ही होगा कि अपनों के खून से सने हाथों को अपने हाथ में लेना बहुत मुश्किल होता है और भारत के लिए भी यह उतना ही मुश्किल है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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