२/३ दिसंबर १९८४ की वह काली रात जो भोपाल वासियों के लिए मिथाइल आइसो साइनेट मौत का जो मंज़र लेकर आई थी उसकी काली यादें आज भी उनके में ताज़ा हैं. यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से निकली इस विषैली गैस ने सोते हुए बहुत से लोगों के लिए वह आख़िरी नींद साबित हुई थी और आज भी उसके दुष्परिणामों को भोपाल झेल रहा है. सवाल यहाँ पर यह नहीं है कि आख़िर दुर्घटना क्यों हुई बल्कि महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या वहां पर सुरक्षा मानकों में कमी थी जो इस तरह की विषैली गसों से निपटने के लिए होना चाहिए थे ? आज इन बातों के जवाब कोई भी नहीं दे पा रहा है क्योंकि वह वो समय था जब देश में बहुत कम बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपना काम कर रही थीं और उनको यहाँ बुलाने में ही बहुत मेहनत करनी पड़ती थी .
कहा यह भी गया था कि इस संयंत्र में एक अमेरिकी दल ने दौरा किया था और इसकी कई सुरक्षा ख़ामियों के बारे में बताया था पर उन मानकों पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया जिसका दुष्प्रभाव पूरे देश ने भी झेला. आख़िर क्या कारण है कि जो कम्पनी अमेरिका और यूरोप में तो मानकों को पूरा करती हैं पर जब वे दुनिया के किसी अन्य क्षेत्र में काम करने जाते हैं तो वे इन मानकों की अनदेखी कर जाते हैं ? इसमें कमी उनकी नहीं बल्कि हमारी सोच और हमारे भ्रष्टाचारी आचरण की है क्योंकि हमारे किसी अधिकारी ने ही कुछ खा पी कर इस मसले में सुरक्षा की अनदेखी तो की ही होगी ? अब यह कह कर काम नहीं चल सकता कि हो सकता है कि उन लोगों को इन सुरक्षा मानकों का सही से पता ही नहीं हो ? ज़िम्मेदारी वाले पदों पर बैठ कर किसी को भी यह हक़ नहीं दिया जा सकता है कि वह अपने को अबोध साबित करने लगे ? कोई किसी बड़े पद पर सिर्फ इसलिए ही चुना जाता है कि उसके पास इन सब बातों के बारे में जानकारी होती है न कि इसलिए कि उसे कुछ पता नहीं होता है.
अच्छा हो कि इस मामले में अब सही फ़ैसला आ जाये और पिछले ढाई दशकों से भोपाल वासियों के दिल में जो पीड़ा छिपी हुई है उसका कुछ सही निर्णय हो जाये. दोषियों को सजा भी दी जाये और पीड़ितों को न्याय और पुनर्वास की बात भी हो. यह सही है कि उस कांड में जो नहीं रहे उनकी जगह पूरी नहीं की जा सकती पर उनके परिवारों को सही तरीके से सम्मान पूर्वक जीने के अवसर तो दिए ही जा सकते हैं ? साथ ही यह शपथ भी ली जानी चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में अब देश में कहीं पर भी सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर किसी भी जगह को अगला भोपाल नहीं बनने दिया जाएगा...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
ज़िम्मेदारी वाले पदों पर बैठ कर किसी को भी यह हक़ नहीं दिया जा सकता है कि वह अपने को अबोध साबित करने लगे ? कोई किसी बड़े पद पर सिर्फ इसलिए ही चुना जाता है कि उसके पास इन सब बातों के बारे में जानकारी होती है न कि इसलिए कि उसे कुछ पता नहीं होता है.
जवाब देंहटाएंbade pad hote se hi jaankari nahi milti..
jaankari hasil karni padti hai..