मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 23 जून 2010

नाव दुर्घटनाएं ?

उत्तर प्रदेश में जिस तरह से पिछले कुछ दिनों में नाव दुर्घटनाओं में तेज़ी आई है उससे लगता है कि कुछ रुपयों के लालच में लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. यह सही है कि जिन स्थानों में बड़ी नदियों पर पुल नहीं बने हैं वहां पर लोगों के लिए आने जाने का एक मात्र साधन नाव ही होती हैं बड़े घाटों पर तो शायद कुछ सुरक्षा मानकों की परवाह की भी जाती हो पर दूर दराज़ के इन छोटे घाटों पर कौन इस तरह के मानकों को देखता और पूछता है ?  अपने घर पहुँचने की जल्दी या फिर नियति का खेल.... कुछ लोगों की ये यात्रायें अंतिम ही साबित हो जाती हैं.
          वैसे तो इस तरह के स्थानों पर नाव चलाने वाले ही इस बात का ध्यान रखते हैं कि किसी भी तरह की दुर्घटना ना होने पायें पर कभी कभी अधिक भार या फिर भंवर में फँस जाने के कारण नाव डूब भी जाती हैं. यह तो नहीं कहा जा सकता कि इसमें केवल नाव वालों का ही दोष होता है पर बहुत सारे कारण इसमें भूमिका निभाते हैं. सबसे पहले तो इस बात पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है कि आखिर अभी तक इन दूर दराज़ के क्षेत्रों में कोई ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बनायीं जा सकी है जो लोगों को जागरूक भी करे साथ ही घाटों पर स्थानीय निवासियों के सहयोग से अपने आप कुछ लोग इस तरह की घटनाओं पर नज़र रखें. लोगों को भी जागरूक किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक सभी लोग अपने हितों के बारे में नहीं सोचेंगें तब तक कुछ भी नहीं किया जा सकता है. यह भी सही है कि अधिकांश नावों में भार से अधिक सामान और लोगों को बैठाया जाता है पर ऐसी दुर्घटनाएं कभी कभी ही होती हैं. फिर भी जिन परिवारों के लोग इन दुर्घटनाओं में हमेशा के लिए चले जाते हैं उनके दर्द को कोई और कैसे समझ सकता है ?
                बात यहाँ पर कुछ करने की नहीं है बल्कि कुछ करने की इच्छा होने की है ? सरकार के पास राजस्व जुटाने के लिए तो पूरी फ़ौज है ? हर राजनैतिक दल के पास भी कार्यकर्ताओं की लम्बी चौड़ी सूची होती है जिनका उपयोग वे विभिन्न चुनावों में करते ही रहते हैं पर कोई भी इस तरफ क्यों नहीं सोचता कि इन्हीं लोगों का सदुपयोग करके जनता को जागरूक भी किया जाये ? क्या ज़रुरत है कि हर बात के लिए सरकारें ही ज़िम्मेदार ठहरा दी जाएँ ? हम जनता के लोग क्यों नहीं अपनी ज़िम्मेदारी उठाना चाहते हैं ? हर बात के लिए किसी तंत्र की तरफ ताकना हमारी मजबूरी क्यों है ? बहुत से ऐसे काम हैं जो हम केवल जनता के सहयोग से ही चल सकते हैं पर जब इस हर काम में सरकारी तंत्र की दखलंदाज़ी हो जाती है तो लोग भ्रष्टाचार के माध्यम से अपनी मर्ज़ी के काम करना चाहते हैं और एक पूरी व्यवस्था ध्वस्त होने में बिलकुल भी समय नहीं लगता है. आज भी चेत जाने से आगे होने वाले नुकसान को टाला तो जा ही सकता है पर क्या कोई इस तरह से सोचने के लिए तैयार है ?    

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