जैस कि पहले से ही पता था कि किसी भी तरह की पेट्रोलियम पदार्थों की वृद्धि के खिलाफ बहुत सारे सुर अचानक ही उठने लगेंगें ठीक वैसा ही हुआ. पवार और ममता की अपनी राजनैतिक मजबूरियां हैं और उन्हें देश की नवरत्न तेल कम्पनियों से अधिक अपने वोट बैंक की चिंता खाए जा रही है. क्या कारण है कि ये नेता केवल अपने वोटों के अलावा कुछ भी देखना नहीं चाहते हैं ? देश में जब भी कोई ठीक काम किये जाने का प्रयास किया जाता है तो कभी सहयोगी के नाम पर तो कभी विपक्षी दलों के नाम पर कुछ आवाजें सामने आ ही जाती हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता. केवल एक बात ही होती है कि वे लोग किसी भी तरह से सरकार पर दबाव डालने की स्थिति में होते हैं.
नेताओं ने इस देश के बहुत सारे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को अपनी झूठी प्रतिष्ठा की भेंट चढ़ा दिया है. एक समय था जब देश में सार्वजनिक क्षेत्र की तूती बोलती थी पर आज क्या स्थिति हो चुकी है ? अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम गलत नीतियों के कारण आज किसी सहारे की बाट जोह रहे हैं. एक समय में देश की सबसे प्रतिष्ठित टी वी कम्पनी अपट्रान केवल सरकारी नीतियों के कारण ही इतिहास बन कर रह गयी है और अचम्भा इस बात का होता है कि ये कम्पनी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलायी जा रही थी और इतने कीर्तिमान बना चुकी थी.
केवल कुछ वोटों के लालच में कुछ नेता इस तरह की बातें करने में नहीं चूकते हैं. देश में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें सरकारी नियंत्रण से मुक्त होनी ही चाहिए इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती हैं. यह ज़रूर है कि हम सभी को यह बात मानने में बहुत समय लगने वाला है कि घरेलू गैस आखिर मंहगी कैसे हो सकती है ? देश में आम माध्यम वर्ग के पास आय बढ़ी है और उसकी क्रय शक्ति में भी इजाफा हुआ है फिर भी सरकारी तंत्र के किसी भी मुफ्त के माल को उड़ाने में आज भी माध्यम वर्ग ख़ुशी महसूस करता है. देश में कुछ चीज़ें निर्बाध गति से चलती रहें इसके लिए समय के साथ उनमें परिवर्तन की आवश्यकता रहती है फिर भी कुछ लोग और चंद नेता इन्हें हमेशा बन्धनों में बाँध कर रखना चाहते हैं.
सरकार ने अभी भी एक बात में कमी रखी है कि उसे केरोसिन के दामों में सही ढंग से इजाफा करने की हिम्मत नहीं दिखाई है. केवल इस केरोसिन के कारण ही मंजूनाथ जैसे अधिकारी मार दिए जाते हैं क्योंकि वे इस तेल के खेल में शामिल नहीं होना चाहते हैं ? यदि केरोसिन और डीज़ल के दामों को भी तर्क संगत कर दिया जाये तो इस तरह के मिलावट का काम करने वाले लोगों का मुनाफा घट जायेगा और सही तेल मिलने लगेगा. आज भी देश के उस तथा कथित गरीब को कितना केरोसिन मिल पाता है यह सभी जानते हैं फिर भी इस तरह से इस पर जनता का इतना पैसा बर्बाद करने का क्या मतलब बनता है ? जब गरीबों तक इसका लाभ पहुंचना ही नहीं है तो फिर किसलिए इस सारी कवायद को जारी रखना ? आज आवश्यकता है कि इन सभी पदार्थों की कीमतों को सही निर्धारण किया जाये जिससे इन तेल कम्पनियों की सेवाए हमें बहुत लम्बे समय तक मिल सकें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
गरीब की कमर तोड़ डाली
जवाब देंहटाएंतेल के दाम बढे तो भाडा बढेगा, भाड़ा बढेगा तो आवश्यक खाने-पीने की वस्तुओं के दाम जो पहले से आसमान छूं रहे है और महंगे हो जायेंगे . कहीं आना जाना और महंगा हो जाएगा , घर में रसोई जलाना महँगा हो जाएगा यानी सब तरफ से मार गरीब पर जो पहले से ही अधमरा पडा है. हे भगवान्, हे अल्लाह , हे इश्वर , हे वाहे गुरु रहम कर इस देश के गरीब पर और श्त्यानाश कर इन सत्ता में बैठ भ्रष्ट देश के धुश्मनो का, सत्यानाश हो इस बेशर्म मनमोहन और नेहरु खानदान का, सत्यानाश हो उनका जो इन्हें वोट देकर इस तरह गरीबों पर अत्याचार करने की छूट देते हो, सत्यानाश हो इन कांग्रेसियों का जो फूट डालकर अपनी रोटिया सकने में लगे है , सत्यानाश हो इन भाजपा वालों को जो साले ढोंगी पहले खुद थूकते है और फिर खुद ही चाटते भी है, सत्यानाश हो इन वामपंथियों का जो ये पाखंडी सर्वहारा वर्ग के हितैषी बनते है मगर आज तक इन गद्दारों ने एक भी उस अमीर का घर नहीं लूटा जिसने गरीब का पैंसा मारकर अमीर बना , सत्यानाश हो इन समाजवादियों का और इन दलितों के मसीहों का . गरीब की हाय इनको जरूर लगे, यही ऊपर वाले से प्रार्थना है .
आलम भाई ! आपके विचार से सभी सहमत होंगें पर किसी भी मसले पर अपने विचार व्यक्त करते समय यदि हम अपने भावों को शालीन भाषा में रखें तो उसकी स्वीकार्यता बढ़ती है.
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