मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 27 जून 2010

सार्क बैठक और आतंक..

इस्लामाबाद में सार्क देशों के के गृह मंत्रियों की बैठक में पहुंचे भारतीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने पाक के विभिन्न नेताओं से भेंट की. इस तरह के माहौल में यद्यपि चिदंबरम ने कहा कि वे यहाँ पर केवल सार्क बैठक के लिए आये हैं पर अलग से चर्चा होने पर वे पाक नेताओं से मुंबई हमले समेत अन्य सुरक्षा और आतंक से जुड़े मसलों पर भी बात करने को तैयार हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य बैठक को सफल बनाना है और इस संगठन की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए वहां के मंच पर अन्य मुद्दों को नहीं उठाया जायेगा.
       पता नहीं अभी भी आतंक को भारत पाक से अलग मुद्दा कैसे मानता है वैसे कई बार बहुत सारे मुद्दों पर पाक की संलिप्तता जग जाहिर है फिर भी भारत ने ही केवल सार्क की भावना की कद्र की है. वैसे पिछले ३ दशकों में पाक जाने वाले चिदंबरम पहले गृह मंत्री हैं. आज जब भारत-पाक-बांग्लादेश-अफगानिस्तान सभी किसी ना किसी तरह के आतंक से पीड़ित हैं तो फिर इस क्षेत्र के ये ४ महत्वपूर्ण देश आख़िर कब तक इस बात की अनदेखी करते रहेंगें कि अभी इस मसले पर सार्क में बात करना ठीक नहीं होगा. हमारे क्षेत्र की समस्या पर अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश फैसला ले रहे हैं और अभी भी हम केवल उचित समय का इंतज़ार कर रहे हैं ? वह समय कभी भी नहीं आएगा अब हमें ही इस मसले को सार्क में नहीं तो बैठक के बाद अनौपचारिक ढंग से सभी देशों से चर्चा करनी ही होगी. इस मामले में भूटान जैसे सबसे छोटे देश ने सख्ती का परिचय देते हुए अपने यहाँ के सारे आतंकी कैम्प उखाड़ फेंके हैं जिससे वहां के लोगों का जन जीवन भी सुखी हुआ है और विकास ने भी गति पकड़ी है. अगर भूटान इस तरह का संकल्प ले सकता है तो अन्य साधन संपन्न बड़े देशों को ऐसा करने से आख़िर कौन रोक रहा है ?
             जो मसला सार्क में सबसे आगे होना चाहिए वह अभी तक एजेंडे में ही नहीं आ पाया है इसलिए ही सार्क के पास दिखाने के लिए बहुत कम उपलब्धियां ही हैं. किसी भी संगठन को चलाने के लिए क्षेत्र की समस्या को वहां पर उठाये बिना कैसे तर्क संगत और उपयोगी बनाया जा सकता है ? इस बात का उत्तर अभी भी सार्क देशों को खोजना है. जिस मूल भावना से द्विपक्षीय मसलों को उठाने से परहेज़ किया गया था आज वे न चाह कर भी अलग से उठाई जाने लगी हैं तो क्यों न इनको भी पूरी तरह से शामिल कर क्षेत्र के सभी देशों की राय करके कुछ ठोस कदम उठाने का प्रयास होना चाहिए. हालाँकि यह बहुत दूर की कौड़ी है क्योंकि क्षेत्र में आतंक का संरक्षक बना पाक किसी भी हालत में ऐसा नहीं होने देगा फिर भी क्षेत्र की सुरक्षा के लिए आख़िर कब तक सभी लोग पाक की अनदेखी करते रहेंगें ?

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