मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

दिल्ली में बिजली मंहगी ...

दिल्ली बिजली नियामक आयोग के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह ने दिल्ली सरकार को पत्र लिख कर कहा है कि दिल्ली में बिजली कम्पनियाँ उपभोक्ताओं से १० करोड़ रूपये रोज़ अधिक वसूल कर रही हैं पर सरकार की तरफ से नयी बिजली दरों की घोषणा पर अमल नहीं किये जाने से उपभोक्ताओं को ३०० करोड़ रुपयों का चूना अप्रैल १० से लग रहा है. यह एक ऐसी खबर है की जिसके बारे में यह समझ नहीं आता कि इस पर खुश हुआ जाये या परेशान हुआ जाये ? पहली बार बढ़ी हुई बिजली की दरों में कमी की बात ही मंहगाई में ख़ुशी तो देती है पर साथ ही यह भी सोचना पड़ता है कि आखिर कौन से ऐसे तत्व हैं जो बिजली कम्पनियों को इतना अधिक लाभ लेने दे रहे हैं और उपभोक्ताओं के हितों पर निरंतर चोट कर रहे हैं ?
           यह खबर इस मामले में राहत पहुँचाने वाली है कि चलो बिजली क्षेत्र में निजी कम्पनियों के आने के बाद गुणवत्ता में सुधार होने के साथ यह भी सामने आ रहा है कि अब बिजली की उपलब्धता सही दरों पर हर समय भी हो सकती है. सरकारी क्षेत्र के निगम और बोर्ड आज तक कहीं भी बिजली के मामले में दक्ष नहीं पाए गए है और इनका पारेषण और वितरण में इतना घाटा हो जाता है कि इन्हें हर समय ही सरकार का मुंह ताकना पड़ता है. सही प्रबंधन और पूरी जवाबदेही के साथ जब ये कम्पनियां यही काम कर सकती हैं तो पूरे देश में चरण बद्ध तरीके से बिजली के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया ही जाना चाहिए. निगम और निजी क्षेत्र बन जाने के बाद उपभोक्ताओं के हित भी सुरक्षित रहें इसीलिए सरकार ने बिजली नियामक आयोगों की परिकल्पना भी की थी. और यह देख कर ख़ुशी हो रही है कि दिल्ली के आयोग ने अपना काम बहुत अच्छे से किया है.
            अब मामला इस जगह आकर फँस जाता है कि सरकार आखिर किस तरह से इन बिजली कंपनियों पर नियंत्रण रखे ? जो भी नियामक आयोग कहता और करता है उस पर अमल कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है. हो सकता है कि अभी तक जो हानि केवल लापरवाहियों के कारण ही होती रहती थीं उन पर इन निजी कंपनियों ने नियंत्रण पा लिया हो जिससे इनका लाभ इतना अधिक बढ़ गया है ? फिर भी कोई भी कदम जल्दबाजी में उठाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हो सकता है कि अभी भी किसी क्षेत्र में ये निजी कम्पनियां घाटा उठा रही हों ? उपभोक्ताओं के साथ ही सरकार और आयोग को इन कम्पनियों के हितों की रक्षा भी करनी होगी क्योंकि सरकारी क्षेत्र के फेल हो जाने के बाद इन कम्पनियों पर ही बिजली का सारा दारोमदार टिका हुआ है और यदि किसी कारण से इनका भी हाल बुरा हुआ तो देश की प्रगति के लिए ज़रूरी बिजली आखिर कहाँ से आएगी ?       

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