भारत के जन जन के मन में निवास करने वाली और पवित्रतम मानी जाने वाली नदी गंगा को अब विश्व धरोहर में सम्मिलित करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने यूनेस्को के साथ इस विचार को साझा करना शुरू कर दिया है यह सही है कि भारत की आत्मा गंगा को अभी भी विश्व में वह स्थान नहीं मिल सका है जो मिलना चाहिए था. पूरी दुनिया में शायद ही ऐसी कोई नदी होगी जो करोड़ों लोगों के जीवन का आधार होने के साथ उनके मोक्ष की व्यवस्था भी करती है. गंगा के नाम से ही एक ऐसा भाव मन में आता है जैसे पता नहीं क्या मिल गया हो फिर भी हम गंगा की गोद में रहने वाले लोग ही इसको प्रदूषित करने में कभी पीछे नहीं रहे हैं.
गंगा को विश्व धरोहर के रूप में विचार के रूप में सामने लाने के पीछे केवल उत्तराखंड की सरकार को प्रयास नहीं करना चाहिए बल्कि जितने राज्यों से होकर यह नदी बहती है उन सभी को इसके लिए प्रयास करने चाहिए तभी यूनेस्को के सामने इस बात को जल्दी मानने का एक कारण बन पायेगा. विश्व में जो जागरूक हैं उन्होंने गंगा से कम महत्त्व की चीज़ों को भी इस धरोहर में शामिल करा लिया है जबकि भारत की तरफ से कोई प्रयास नहीं किये जाने के कारण आज तक इस मामले में कुछ भी नहीं हो सका है. अच्छा है कि कम से कम गंगा के उद्गम वाले राज्य ने इस बारे में सोचना तो शुरू किया है और अब इस सूची में शामिल होने की सारी औपचारिकतायें पूरी करने के बाद इसे यह दर्ज़ा मिलने में कोई परेशानी नहीं होने वाली है.
भारतीय जनमानस एक तरफ तो गंगा से मुक्ति की आशा करता है पर साथ ही दूसरी तरफ इसके संसाधनों का दुरूपयोग करने से भी नहीं चूकता है. गंगा विश्व धरोहर अपने इतिहास के कारण तो बन जाएगी पर क्या हम सभी इस बात के लिए तैयार हैं कि इसे वास्तव में विश्व धरोहर के रूप में संजो कर रख सकें ? हमारा हर कदम गंगा के लिए कष्टों को बढ़ने वाला ही होता है ? क्यों नहीं हम इसके साथ केवल श्रद्धा का भाव छोड़कर इसके जीवन के बारे में नहीं सोचते हैं ? पर्यावरण के बारे में विशेषज्ञ बहुत कुछ कहते रहते हैं पर गंगा के डूब क्षेत्र में क्यों नहीं हम पारिस्थितिकीय जीवन को सुधारने की कोशिश करते हैं ? हम गंगा के डूब क्षेत्र में वो पेड़ पौधे लगाने का काम तो कर ही सकते हैं जिनसे इसको प्राण मिलते हैं अपने लालच में केवल नदी के जल और संसाधनों के दोहन आख़िर कब तक किया जा सकता है ? अब तो चेतने का समय आ ही गया है वर्ना इसके धरोहर बन जाने के बाद इसे देखने आने वालों को क्या हम अपनी लापरवाही के दर्शन करायेंगें कि हम अपनी और पूरे विश्व की धरोहर को भी नहीं संभाल सकते हैं ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
पता नहीं हमारी मानसिकता ऐसी कैसे हो गयी कि जिसे पूजते हैं उसे ही गंदा करते हैं। गंगा के साथ हमें सभी नदियों के संरक्षण पर विचार करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेखन।
जवाब देंहटाएंपवित्र संकल्प है यह.
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