कम ही सुर्ख़ियों में रहने वाली दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के लिए इससे ज्यादा गर्व की बात और क्या हो सकती है कि उन्हें पहले ली कुवान वर्ल्ड सिटी पुरुस्कार में चौथे नम्बर पर रखा गया है. यह बिलकुल सही है कि शीला दीक्षित के प्रयासों से दिल्ली आज रहने लायक एक अच्छा स्थान बन चुकी है. प्याज़ के दामों के चक्कर में भाजपा का गढ़ माने जाने वाली दिल्ली जब उसके हाथ से खिसकी और कांग्रेस के हाथ में आई तो लोगों को लगा कि शीला अब अपने सन्यास लेने के समय क्या जादू कर पाएंगीं और जल्द ही यहाँ फिर से भाजपा की सरकार बनेगी, पर सारे कयासों को झुठलाते हुए उनहोंने तीसरी बार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल ली. इस मामले में दिल्ली की जनता बधाई की पात्र है कि उसने यह देखा कि शीला के प्रयास बहुत अच्छे हैं और राष्ट्रमंडल खेलों से पहले इनकी की जाने वाली बहुत सी तैयारियों पर दिल्ली सरकार का हक़ है और इस समय इनको बदलने से देश की शान में बट्टा लग सकता है.
कहने वाले तो यहाँ तक भी कह सकते हैं कि शीला ने ऐसा कुछ खास नहीं किया पर आंकड़े और दिल्ली की बदलती हवा कुछ और ही संकेत करती है. ३२ देशों के ७२ शहरों के आवेदनों में अगर दिल्ली चौथे स्थान पर है तो इसके लिए सरकार और दिल्ली वासी बधाई के पात्र हैं. दिल्ली में काला धुवाँ उगलने वाले वाहनों के स्थान पर गैस से चलने वाली पूरी परिवहन व्यवस्था को लागू करना एक टेढ़ी खीर था पर जिस दृढ संकल्प से दिल्ली की शीला सरकार ने इसको लागू किया वह दुनिया भर में इकलौता मामला है. दिल्ली की जनता ने भी इसके लिए बहुत कष्ट झेले हैं क्योंकि शुरू में हरित ईंधन से चलने वाली कम गाड़ियों के होने के कारण लोगों को बहुत असुविधा हुई थी. १९९७ में दिल्ली का वन क्षेत्र जो केवल २७ वर्ग किलोमीटर रह गया था उसे सरकार के प्रयासों से ३०० वर्ग किलोमीटर तक बढ़ा लिया गया है और दिल्ली वास्तव में हरित दिल्ली लगने लगी है. फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.
अब चाहे जो भी हो पर आने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए जितनी सुनियोजित तैयारी दिल्ली सरकार ने कर ली है उससे देश का सर गर्व से ऊंचा होने वाला है. अब यह दिल्ली नागरिकों और अन्य लोगों पर निर्भर करता है कि सरकारी प्रयासों को अपनाते हुए वे दिल्ली के साथ भारत का मान भी खेलों के समय बढ़ा सकें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें