आतंक से पीड़ित जम्मू और कश्मीर राज्य में से पुलिस की गोली से मरे ९ साल के लड़के की घटना को लेकर जिस तरह से लोग सड़कों पर उतर आये हैं उससे तो यही लगता है की अभी भी कश्मीर में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं जो किसी भी तरह से वहां पर शांति नहीं चाहते हैं. यह सही है कि किसी भी तरह से पुलिस की गोली से मरने वाले किसी भी आम आदमी की मौत को सही नहीं ठहराया जा सकता है पर जिस तरह से वहां के आम लोग भी सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं इस तरह की अराजकता कैसे बर्दाश्त की जा सकती है ? क्या पूरे देश में कहीं और ऐसी घटनाएँ नहीं होती हैं ? क्या कश्मीर में आज तक कोई आम नागरिक आतंकियों की गोलियों से नहीं मरा है ?
दुःख तब होता है जब उमर अब्दुल्लाह जैसे सत्ता का सुख भोग रहे नेता भी जो वास्तविकता समझते हैं बिना कुछ सोचे समझे ही सुरक्षा बलों को इस तरह की घटनाओं को केवल इसलिए ही ज़िम्मेदार ठहरा देते हैं क्योंकि उनको आगे आने वाले हर चुनाव में कश्मीरियों के वोट भी चाहिए ? क्या बिना इस सीआरपीएफ के जिन सुविधाओं को उमर भोग रहे हैं कभी संभव थीं ? देश के पूरे हिस्सों से चुने गए जवान क्यों आखिर कश्मीर में अपनी जान की बाज़ी लगाकर भी वहां के लोगों की आतंकियों से सुरक्षा कर रहे हैं ? जब इस तरह के आरोप उन पर लगाये ही जाने हैं तो क्यों नहीं ये नेता अपने आप ही वहां के हालात सुधारने के लिए कोई अच्छी कोशिश क्यों नहीं करते ? जब विधान सभा पर आतंकियों का हमला हुआ था तो इन्हीं सुरक्षा बलों ने इन नेताओं को बचाया था जिन्हें अब ये बल ही बेकाबू नज़र आ रहे हैं ?
सवाल यहाँ पर यह नहीं है कि सोपोर में क्या हुआ था ? सवाल यह है कि क्या उमर अब्दुल्लाह को इतने अशांत क्षेत्र में मुख्यमंत्री होना भी चाहिए ? जो व्यक्ति राज्य की कानून व्यवस्था सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है अगर वही बलों को बेकाबू कहने लगे तो किस तरह से राज्य की जनता इन सुरक्षा बलों को अपने मान सकेगी ? जिस तरह की अराजकता कश्मीर में आम तौर पर दिखायी देती है वैसी अगर पूरी दुनिया में दिखाई देने लगे तो कानून कि धज्जियाँ ही उड़ जाएँ ? किसी भी निर्दोष की मौत की जांच करने के लिए जो प्रक्रिया है उसका अनुपालन करने के स्थान पर हजारों की भीड़ इकट्ठी करके पुलिस थानों और सुरक्षा बलों पर सुनियोजित हमले करना क्या किसी समाज को शोभा देता है ? नहीं पर कश्मीर में ऐसा होता रहता है क्योंकि आज भी वहां कुछ लोग पाकिस्तान से आदेश पाते हैं और जनता को पाक के हितों के अनुसार मोड़ने की कोशिश करते रहते हैं ?
अच्छा होता अगर उमर अब्दुल्लाह इस मसले पर कुछ सही बोलते या फिर चुप ही रहते क्योंकि उनकी इस बकवास के बाद लोगों को यह लग सकता है कि जब मुख्यमंत्री को लगता है कि सुरक्षा बल बेकाबू हैं तो वे वास्तव में ही बेकाबू होंगें. इस तरह कि अराजकता से अभी और लोगों के मरने की आशंका बढ़ जाती है क्योंकि जब बलों पर सुनियोजित तरीके से हमले होंगें तो बचाव करने पर कुछ लोगों के घायल होने और मरने की आशंका और बढ़ जाएगी. नेताओं को अपने मुंह बंद कर कुछ सही करने का प्रयास करना चाहिए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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