मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 21 जुलाई 2010

आतंक और सरकारी लिंक

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) और अमेरिकी विचार संस्था हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा आतंकवाद पर आयोजित एक सम्मलेन के उद्घाटन करते समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन ने कहा कि जिस तरह से सरकारी एजेंसियों और आतंकी संगठनों के बीच सांठ-गाँठ बढ़ती जा रही है वह आतंक के विरुद्ध विश्व की लड़ाई में एक बहुत बुरा दौर साबित होने वाली है. मुंबई हमले के बारे में पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक हेडली के खुलासे के बारे में मेनन ने पाक का नाम लिए बिना ही कहा कि जिस तरह के खुलासे हो रहे हैं उससे यह साफ़ पता चलता है कि किस तरह से आतंकी सरकारी एजेंसियों के माध्यम से आतंक फ़ैलाने में लगे हुए हैं.
        सवाल यहाँ पर फिर से वही उठता है कि आख़िर अमेरिका कब तक पाक की इस तरह की हरकतों को बर्दाश्त करता रहेगा ? एक तरफ़ भूटान में पाक आतंक को सबकी साझी समस्या मानने में नहीं हिचकता है तो वहीं दूसरी तरफ वह पूरी तरह से सरकारी स्तर पर भी आतंकियों को अच्छे से मदद करता रहता है ? आज आतंक केवल किसी एक देश की समस्या नहीं बचा है दुनिया के हर देश में विद्रोहियों को साधन मुहैया करने में कुछ देशों की संलिप्तता जग जाहिर है पर आतंक के खिलाफ़ जंग लड़ने वाले उन्हें ही आतंक के खिलाफ़ लड़ाई में शामिल किये हुए हैं ? यह किस तरह का विरोधाभास है कि चोर से चोरी करने को कहा जा रहा है और शाह से जागने के लिए ? जब तक इस तरह के झूठे और दोगली बातें करने वाले देश आतंक के खिलाफ़ लड़ाई में शामिल रहेंगें तब तक आतंकी अपनी मुहिम में पूरी तरह से सफल होते रहेंगें.
       पाक- अफगान समस्या में हम पाक के टेरर लिंक को देख ही चुके हैं. १९९९ में भारतीय विमान के अपहरण और फिर पूरी समस्या में पाक ने जिस तरह से भूमिका निभाई थी उसको लेकर कोई भी पाक पर संदेह ही करेगा. आज भी पाक अपने को इस सारे मसले में पूरी तरह से उलझाये हुए है और स्थिति इतनी ख़राब हो चुकी है कि ये आतंकी संगठन अब पाक की सत्ता को ही चुनौती देने लगे हैं. आतंकी पाक को भी अफ़गानिस्तान की तरह उपयोग करना चाह रहे हैं और काफी हद तक वे अपने मंसूबे में सफल भी हो रहे हैं क्योंकि जब भी इस तरह का कोई खुलासा होता है पाक के लिए मुंह छिपाना मुश्किल हो जाता है ? आतंकी किसी दिन पाक की सत्ता पर कब्ज़ा कर लेंगें और साथ ही दुनिया के सामने पाक के पूरे परमाणु कार्यक्रम के आतंकी हाथों में जाने की समस्या भी आ जाएगी ? अच्छा हो कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश इस बात को समझ लें कि कौन कहाँ से गड़बड़ कर रहा है वरना इतनी देर हो चुकी होगी कि चाहकर भी कुछ करने की स्थिति शेष नहीं रहेगी.   

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