मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 7 अगस्त 2010

भाजपा की मर्यादा

 भाजपा जो सार्वजानिक जीवन में शुचिता और दूसरों को सम्मान देने की बातें करते कभी भी नहीं थकती है उसका असली चेहरा छत्तीसगढ़ में सामने आ गया है. पार्टी के पत्र में मंहगाई को लेकर एक कार्टून छापा गया है जिसको लेकर वहां की राजनीति में उबाल आ गया है. इसके विरोध में कांग्रेस ने ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन करते हुए कार्यवाही की मांग की है जबकि इतना विरोध होने की आशंका न होने के कारण भाजपा अब सन्नाटे में है और किसी भी तरह से कुतर्क देकर अपनी बात को सही साबित करने का प्रयास कर रही है उसका कहना है कि कार्टून केवल कलाकार के दिमाग़ की उपज है पर क्या इस तरह से व्यक्ति विशेष पर प्रहार करके अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात करना उचित है ?
             जो भी इस कार्टून को देखेगा वह इसे सभी श्रेणी में नहीं रख सकता है क्योंकि इसमें जिस तरह का चित्रण है वह सार्वजानिक जीवन में शुचिता के भाजपाई दावे की धज्जियाँ उड़ा देता है. अभिव्यक्ति के नाम पर किसी व्यक्ति विशेष का इस तरह से चित्रण क्या उचित हो सकता है ? जिस तरह की अभिव्यक्ति किसी कलाकार ने की यह उसका मामला था पर क्या भाजपा इतनी नासमझ है कि कोई कुछ भी बनाकर दे दे और उसका पत्र उसको आँखें मूँद कर छाप दे ? इस तरह के मामलों में भाजपा हमेशा से ही शुचिता की बड़ी बड़ी बातें तो खूब करती है पर जब अमल करने का समय आता है तो उसे यह समझ ही नहीं आता है कि व्यंग और शुचिता में कहाँ पर सीमा रेखा खींचनी है ?
       आज सार्वजानिक जीवन में हर बात का अभाव होता जा रहा है और इस बात का फायदा वे तत्व अधिक उठा रहे हैं जो छोटे रास्ते से राजनीति का ककहरा सीख रहे हैं. पहले एक निश्चित सेवा के बाद ही लोगों को पार्टियों में पद मिला करते थे और उन पदों की गरिमा भी हुआ करती थी पर जिस तरह से आजकल केवल आगे बढ़ना ही एक मात्र उद्देश्य रह गया है उससे तो यही लगता है कि आज इन सभी बातों का कोई मतलब नहीं रह गया है ? पार्टियों को जिताऊ उम्मीदवारों के सहारे अपनी संख्या बढ़ानी है तो दल बदलुओं को किसी भी तरह से सत्ता के सुखों को भोगना है ? जब राजनीति का ऐसा स्वरुप हो गया है तो किसी भी व्यक्ति और पार्टी से कुछ खास उम्मीदें भी तो नहीं की जा सकती हैं ? अब शायद राजनीति जगह ही नहीं है जहाँ पर शुचिता की बातें की जा सकें ?     


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