मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

एक और विजय दशमी

आज फिर से बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व विजय दशमी पूरी दुनिया में मनाया जायेगा. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्म से ही उनके रावन का वध कर लंका का शासन विभीषण को सौंपने तक जिन मर्यादाओं का वर्णन आता है वह इतिहास में कहीं भी दुर्लभ है. रावण के अत्याचारों से दुखी जनमानस की बात ही नहीं होनी चाहिए उसका इतना आतंक था कि देवता, यक्ष, गन्धर्व और पृथ्वी तक आतंकित थे. जब इन सभी ने श्री हरी भगवान् विष्णु की प्रार्थना करनी चाही तो रावण के आतंक के कारन पृथ्वी गाय का रूप धारण करके आई थी. श्री राम का जन्म कोई अचानक होने वाली घटना नहीं वरन पृथ्वी लोक को रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए होने वाली एक नियोजित घटना थी. यह बात स्वयं प्रतापी और विद्वान रावण भी जानता था कि उसके पापों के कारण उसे सद्गति कभी नहीं मिल सकती है तभी उसने शूपर्णखा के द्वारा पहली बार अरण्य में भगवन की उपस्थिति के समय ही मन में अनुमान कर लिया था कि अगर स्वयं श्री हरि विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया है तो मैं जाकर हठपूर्वक उनसे बैर करूंगा.  इसी क्रम में उसने जगत्जननी भगवती माँ सीता का अपहरण कर अपनी मृत्यु को सुनिश्चित और जीवन के अंत में मोक्ष प्राप्त करने की व्यवस्था कर ली थी.
      यद्यपि रावण ने श्री राम के प्रति जो कुछ भी किया था उसके बाद वह मृत्यु का तो अधिकारी था पर उसे सद्गति मिलेगी इसमें सभी को संदेह था. पर श्री राम की करुना के आगे सभी नत मस्तक हैं उन्होंने भगवती सीता को इतने कष्ट पहुँचाने वाले रावण को भी वही गति प्रदान कर दी जो जन्मों जन्मों तक ताप करने के बाद मुनियों को प्राप्त होती है. श्री राम का स्वभाव ही ऐसा है कि वे करुना के सागर हैं शत्रु भाव से भी उनका नाम लेने वाले सभी दुराचारी राक्षस भी मोक्ष को प्राप्त हो गए. भगवान का कहना है कि भले ही बैर भाव से ही सही पर उन राक्षसों ने भी उनका स्मरण तो किया ही ?
     आज हम भगवान श्री राम के विचारों पर प्रसन्न तो बहुत होते हैं पर जब स्वयं कुछ करने का अवसर आता है तो हम सबसे पहले अपने हितों पर विचार करते हैं ? पहले हम सभी को श्री राम की तरह त्याग को सीखना होगा तभी हम निष्पक्ष भाव से दूसरों के बारे में विचार कर पायेंगें... आज आवश्यकता है कि हम अपने अन्दर बैठे रावण को मारने का प्रयास करें..... जो कुविचारों की राक्षसी सेना हमें सन्मार्ग से भटकाती है उससे निपटने के लिए अब हमें सद्विचारों की वानरी सेना को सामने लाना ही होगा तभी सार्थक हो पायेगा विजय दशमी मनाने का हमारा सपना और देश में आ सकेगा एक बार फिर से राम राज्य..... 
 
        

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