मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

दहेज़ हत्या पर कोर्ट

"स्वस्थ समाज की पहचान केवल इस बात से ही  होती है कि वह महिलाओं को कितना सम्मान देता है पर अब भारतीय समाज महिलाओं की इज्ज़त कम कर रहा है और वह बीमार हो गया है." यह टिप्पणी उ०प्र० के एक दहेज़ हत्या के मामले में सुनवाई करते समय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने की. न्यायमूर्ति द्वय ने यह भी कहा कि मौत से कम सज़ा इस मामले में होनी ही नहीं चाहिए क्योंकि यह सीधे तौर पर हत्या का मामला होता है. उन्होंने कहा कि बहू की हत्या कर देने की कुरीति पर बहुत कठोरता से वार करने की ज़रुरत है और इसके बिना कोई भी समाज इस तरह के अपराधों को नहीं रोक सकता है.
          कोर्ट का यह कहना कि यह सीधे तौर पर हत्या का मामला है और इसमें धार ३०२ लगायी जानी चाहिए पर यहाँ पर ३०४ बी और दहेज़ अधिनियम की ४९८ ए-४ के तहत मामला दर्ज किया गया है इसलिए कुछ और नहीं किया जा सकता है पर इस तरह के मामलों में सीधे तौर पर ३०२ के तहत भी अभियोजन किया जाना चाहिए. क्योंकि जिन धाराओं में यह केस दर्ज किये जाते हैं उनमें उम्र क़ैद से अधिक का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए इस बर्बरता के खिलाफ चाहकर भी कोर्ट कुछ नहीं कर सकती है. कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश से सहमति दिखाई और उम्र क़ैद की सज़ा को बनाये रखा है.
         यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल जो उठता है कि आखिर क्यों इतने सारे अधिनियम और कानून होने के बाद भी हत्यारे इतनी आसानी से बच निकलते हैं ? कहीं न कहीं इन सारे मामलों में अभियोजन पक्ष की अपराधियों से सांठ-गाँठ होती है जिसके चलते वे अभियोग लिखते समय ही मामले को हल्की धाराएँ लगाकर सज़ा कम करवाने की तरफ कदम बढ़ा चुके होते हैं. इस तरह के मामलों में यह भी देखा जाना चाहिए कि जिन  लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया जा रहा है उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि तो नहीं है ? अगर ऐसा है तो कोर्ट को स्वयं ही संज्ञान लेते हुए निष्पक्ष तरीके सा अभियोग लिखवाना चाहिए. तभी जाकर दोषियों के खिलाफ़ ठोस कार्यवाही की जा सकेगी.

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2 टिप्‍पणियां:

  1. इन्डियन एवीडेन्स एक्ट, पुलिस की कार्यप्रणाली और पुलिसिया मानसिकता के लोग तथा धीमी न्यायिक प्रक्रिया, सभी में आमूल-चूल परिवर्तन होना चाहिये..

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  2. बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है आप ने इस पर चर्चा होनी चाहिए...
    यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल जो उठता है कि आखिर क्यों इतने सारे अधिनियम और कानून होने के बाद भी हत्यारे इतनी आसानी से बच निकलते हैं ?

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