मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 13 नवंबर 2010

शिशु मृत्यु दर और भारत

चिकित्सा जगत की प्रतिष्ठित पत्रिका "द लांसेट" ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है की भारत में शिशु मृत्यु दर में निश्चित तौर पर कमी आई है फिर भी अभी इस मामले में बहुत कुछ किया जाना शेष है.  भारत में पूरी दुनिया के २० % बच्चों की ५ साल के होने से पहले ही मृत्यु हो जाती है जिससे यह पता चलता है कि कुछ ठोस करके इस तरह से होने वाली मृत्यु दर को कम किया जा सकता है ? शिशुओं की मृत्यु में मुख्या रूप से ज़िम्मेदार दस्त और निमोनिया पर अगर समय से काबू पा लिया जाये तो यह पूरा परिदृश्य पलटा जा सकता है अभी तक ग्रामीण भारत और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए जिस तरह की योजनायें बनायीं जाती हैं उनसे यही पता चलता है कि उनका धरातल पर पूरी तरह से अनुपालन नहीं किया जाता है ?
          केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के माध्यम से बहुत सारी योजनायें चलायी जा रही हैं पर उनको जिस तत्परता से लिया जाना चाहिए आज तक वैसे कभी भी नहीं लिए जाने के कारण हमारी बहुत सारी योजनायें अपने आप ही असफल हो जाया करती हैं. आज भी देश कि तहसीलों तक में चिकित्सकों का अभाव है और कुछ सरकारी नीतियां और उनके साथ चिकित्सा विभाग की उदासीनता के कारण यह स्थिति और भी विकट हो जाती है. सरकारें केवल पैसा दे सकती हैं पर स्थानीय स्तर पर चिकित्सक आकर कुछ कर भी रहे हैं या नहीं इस बात को देखने के लिए अभी भी कोई तंत्र हमारे पास नहीं है जिसका लाभ उठाकर लोग कुछ पैसे ले देकर अपने घर पर प्रैक्टिस करते रहते हैं और माह में एक दो बार जाकर ही अपनी उपस्थिति पूरी कर आते हैं.
      योजनायें बनाने से अधिक आवश्यकता आज इस बात की है कि जिन स्थाओं पर चिकित्सा सुविधाएँ नहीं हैं उनको पूरी तत्परता से पहुँचाया जाए और साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाये कि कहीं से इसमें ढिलाई न होने पाए. सेवा में किसी को भी पूरी तरह से नियमित न किया जाये उनको पूरा पैसा भी दिया जाये और उनकी उपस्थिति लगाने के लिए स्थानीय स्तर पर भी कुछ व्यवस्था भी की जाये जिससे इन कर्मचारियों पर पूरी नज़र रखी जा सके. जब तक इस तरह के किसी भी तंत्र को हम पूरी तरह से एक सुचारू व्यवस्था के तहत नहीं लेकर आयेंगें तब तक कुछ भी करना संभव नहीं हो सकेगा.   

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