मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

मजदूर और उनका बोर्ड

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मजदूरों के कल्याण के लिए गठित किये जाने वाले बोर्डों के बारे में लापरवाही करने के मामले में केंद्र सरकार को सख्ती से कहा है कि यदि वह अपना दायित्व पूरा कर पाने में असफल रहती है तो उसके खिलाफ अवमानना का मामला बन सकता है. असल में इस मामले की शुरुआत उस समय हुई जब एक जनहित याचिका में सरकार पर यह आरोप लगाया गया कि सभी राज्य सरकारें इस मद के लिए सेस तो वसूल कर रही हैं पर जब मजदूरों के कल्याण के लिए बोर्ड के गठन की बारी आई तो सभी राज्य चुप्पी साधे बैठे हैं और चूंकि इस मामले में दिशा निर्देश केद्र सरकार को ही जारी करने थे इसलिए न्यायालय ने अपनी नाराज़गी उससे ही जतलाई है.
     अब सवाल यह उठता है कि जब सरकार के विभिन्न मंत्रालय इस तरह से काम करने लगें तो उस समय इस तरह की मूलभूत समस्याओं से निपटने में असफल रहने वाले मंत्री की ज़िम्मेदारी तुरंत ही निश्चित कर उसे एक समय सीमा देनी चाहिए जिससे वह सही समय से काम कर सके और आम लोगों की जिंदगी से जुड़े फैसले लेने में किसी को भी कोई समस्या नहीं हो. यहाँ पर एक बात और सामने आती है कि संसद या विधान सभाओं में कोई भी सरकार हो या कहीं भी कोई भी विपक्ष हो इस मामले में सभी का रवैय्या पूरी तरह से एक जैसा ही रहा है. ऐसा लगता है कि जैसे इन लोगों ने अपने हितों को साधने के लिए आम गरीब मजदूरों का खून चूसने में आम सहमति बना रखी है. इस मामले में कोई भी सरकार अपने काम को ठीक ढंग से नहीं कर पाई है.
      अभी तक विकास करने और गरीबी दूर करने के मामले में सभी लोगों के पास बहुत अच्छी अच्छी बातें करने के लिए हैं पर जब भी ज़रुरत पड़ती है कोई भी इन मानदंडों पर खरा नहीं उतर पाता है. अगर केंद्र कि संप्रग सरकार इस मामले में दिशा निर्देश जारी कर पाने में असफल रही तो उसकी राज्य सरकारें भी उतनी ही निकम्मी साबित हुईं, भाजपा या अन्य सभी दल जिनमें मजदूरों की बात करने वाले वामपंथी भी शामिल हैं इस सेस का इस्तेमाल अपने अन्य कामों के लिए करते रहे तब किसी को यह चिंता नहीं हुई कि आखिर यह पैसा सही जगह क्यों इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है ? देश में आज भी इस तरह लूट खुले आम क्यों चल रही है ?
      आज के समय में सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की नहीं है कि रोज़ नए कानून बनाये जाएँ पर इस बात कि है कि जो कानून पहले से बने हुए हैं उनका सही ढंग से ईमानदारी से अनुपालन किया जाए और अगर उनमें कोई कमियां दिखाई देती हैं तो राज्यों से विचार विमर्श करके उन्हें दूर करने की कोशिशें की जानी चाहिए. केवल अपनी ज़िमेदारियां दूसरों पर टालने और अपने लिए कुछ भी न कर पाने का रोना आख़िर कब तक रोया जाता रहेगा ? देश में सभी के कल्याण की बातें होनी चाहिए न कि हर मामले पर एक दूसरे की टांग खिंचाई की जाने लगे ? देश आज भी समग्र विकास की बात जोह रहा है  पर जाने कब नेता अपनी बातों में देश को भी जोड़कर देख पायेंगें ?    

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस देश में में किसी को देश और वासियों से मतलब नहीं है..

    जवाब देंहटाएं
  2. ऐसे ही और भी बहुत सी समस्याए है, जिनकी सरकार अनदेखी कर रही है...........

    जवाब देंहटाएं