मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

३ जी और सुरक्षा

             देश में अभी हाल में ही शुरू हुई ३ जी सेवाएं लगता है उपभोक्ताओं तक पहुँचने में अभी बहुत समय लगने वाला है क्योंकि जिस तरह की सुरक्षा चिंताएं इस तकनीक में सामने आ रही है वह भारत जैसे आतंक से जूझते देश के लिए बहुत ख़तरनाक हो सकता है.  केंद्र सरकार और मोबाइल कम्पनियों के बीच में हुई बात चीत में इस बात पर सुरक्षा एजेंसियों ने चिंता व्यक्त की तो सरकार ने इन सभी कम्पनियों को १ हफ्ते का समय देते हुए कहा है कि अगर इस बीच में ये कम्पनियां अपनी सेवाओं को टेप करने की कोई विधि नहीं बताती हैं तो वायस काल  को छोड़कर सभी तरह की डाटा सेवाओं पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया जायेगा क्योंकि अभी तक वीडियो काल्स को रोकने का कोई साधन ख़ुफ़िया तंत्र के पास नहीं है.  
            इस तरह की समस्या आने पर ही आखिर चिंताएं व्यक्त करना कहाँ तक उचित कहा जा सकता है ? क्या सरकार और इन कम्पनियों को यह पता नहीं था कि कि इस तरह की सुरक्षा से जुडी समस्याएं इन सेवाओं में आनी ही हैं ? अगर ये सब यह जानते थे तो फिर अभी तक इससे निपटने के लिए पहले से ही कुछ करने की तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया गया ? असल में ऐसा कि देश में कोई भी किसी बात के लिए जवाबदेह नहीं है ऐसा ही लगता है क्योंकि जिसके मन में जो भी आता है वह उसे करने में चूकना नहीं चाहता है और जब बात सर से ऊपर हो जाती है तो सब कुछ छोड़कर उसके पीछे भागना एक आदत सी बन गयी है ? क्या जिन देशों में यह तकनीक प्रयोग में लायी जा रही है वहां पर सुरक्षा सम्बन्धी चिंताएं नहीं हैं और अगर हैं तो वे लोग इससे किस तरह से निपट रहे हैं ? जब नयी नयी तकनीक हैं तो उनके लिए कोई न कोई सुरक्षा के उपाय भी होंगें ही ?
     मोबाइल कम्पनियों ने कुछ बातें सुरक्षा एजेंसियों के साथ साझा की हैं और ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि वे इन पर विचार करके शीघ्र ही अपने मत को बता देंगीं कि इनसे कुछ किया जा सकता है या नहीं ? अच्छा हो कि किसी भी तरह की नयी तकनीक को लाने की सोचने के साथ ही इस बात पर भी विचार कर लिए जाना चाहिए कि इनसे किस तरह की नयी समस्याएं सामने आ सकती हैं और उनसे निपटने के लिए आखिर क्या किया जाना आवश्यक होगा ? केवल सुरक्षा के कारन देश को सूचना क्रांति से रोका नहीं जा सकता पर साथ ही यह भी सही है कि किसी भी क्रांति के लिए देश के हितों से भी समझौता नहीं किया जा सकता है ?    
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. "देश के हितों से समझौता नहीं किया जा सकता है" जब भी कोई नयी तकनीक आती है, ऊपर बैठे लोग पहले यह सोचते हैं की पैसा कहाँ बन रहा है. जैसा आपने कहा जब हर तरफ चिल्ल पौँ होने लगती है तो कुछ जागृत हो उठते हैं. यही हमारी इस लोकतंत्र की नियति प्रतीत होती है.

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