आख़िर कार बहुत दिनों के बाद ही सही अमेरिका को यह समझ में आ ही गया कि उसे दूसरे देशों को अपने रक्षा खर्च में कटौती करने के उपदेश के स्थान पर खुद ही अपने खर्च में कटौती करनी चाहिए. अभी तक एक तरफ अमेरिका की नीति दुनिया भर में झगडे फ़ैलाने की रही है वही दूसरी तरफ वह अपने हितों के लिए कई झगडे बढाने में भी आज तक कभी भी नहीं चूका है ? उसने अभी तक दोहरी नीति का पालन करते हुए पहले झगडे बढ़ाये और फिर दोनों ही पक्षों को घातक हथियारों की खेप भी बेच ली ? आज समय बहुत बदल चूका है क्योंकि दुनिया की अर्थ शक्ति के केंद्र अब बदलने लगे हैं और सारी दुनिया जानती है कि बिना आर्थिक ताकत के आज कोई भी देश अपने को ताकतवर साबित नहीं कर सकता है ? आज यह भारत की बढती आर्थिक ताकत का ही असर है कि पूरी दुनिया में फैले बड़े देश अपने हितों के लाभ को पूरा करने के लए भारत की तरफ भी ताकना शुरू कर चुके हैं?
आज अब यह सही समय है कि सारी की सारी दुनिया यह अच्छी तरह से समझ ले कि केवल अमेरिका पर आँख मूँद कर भरोसा करने वाले बहुत देश हैं फिर भी किसी भी तरह से अगर सभी उस पर इसी तरह से भरोसा करते रहेंगें तो एक दिन यह दुनिया घातक हथियारों की दौड़ में फँस जाएगी ? अच्छा ही है कि अब अमेरिका को यह समझ में आने लगा है कि उसे कहीं न कहीं अपने रक्षा खर्च में बड़ी कटौती करनी ही पड़ेगी क्योंकि अब उसका अपना कुल खर्च भी उसे अनाप शनाप तरह से खर्च करने की अनुमति नहीं देता है अभी तक जो अमेरिका दूसरों को केवल सलाह दिया करता था आज वह कम से कम इस बात की अहमियत को समझने की तरफ जाने तो लगा है ?
वैसे यह कोई बहुत खुश होने की बात भी नहीं ह क्योंकि अभी तक ये केवल एक प्रस्ताव भर है और सीनेट में इसे किस हद तक समर्थन मिल पायेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा ? आज भी यही स्थिति है की अभी तक अमेरिका के अपने हित पूरी दुनिया में केवल कुछ जगहों पर ही देखता रहता है जब तक वह पूरी दुनिया में शान्ति लाने का प्रयास ईमानदारी से नहीं करना चाहेगा उसके द्वारा उठाये गए कसी भी कदम से कोई अंतर नहीं आने वाला है ? अब समय की आवश्यकता है ki पूरी दुनिया अपने रक्षा खर्च में कटौती करके वास्तव में ज़रूरी चीज़ें लोगों तक पहुँचाने का काम करना आज से ही शुरू कर दें पर उस स्थिति में इन हथियार बनाने वाली कंपनियों का क्या होगा ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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