देश की राजनीति में जिस हद तक भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें जमा ली हैं उसको देखते हुए अब कोई भी सरकार इसकी अनदेखी करके इससे बच नहीं सकती है और लगता है कि वर्तमान संप्रग सरकार ने इससे निपटने के लिए कुछ वास्तव में ठोस कदम उठाने के बारे में संकल्प कर लिया है ? जिस तरह से एक ही दिन में सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह और संप्रग प्रमुख सोनिया ने अलग अलग मंचों से एक तरह की बात कही वह यदि हकीकत में बदल जाए तो देश का भविष्य उज्जवल हो सकता है. प्रवासी भारतीयों के सम्मलेन को संबोधित करते हुए मनमोहन ने कहा कि सरकार में ज्यादा से ज्यादा पारदर्शिता लाने के प्रयास किये जा रहे हैं और साथ ही उन्होंने एक बार फिर से देश की मज़बूत अर्थ व्यवस्था की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि दुनिया में आये भीषण संकट को भी हमारी उभरती हुई अर्थ व्यवस्था ने आसानी से पार कर लिया बल्कि अन्य कई देशों और विश्व बाज़ार को संकट से उबारने में यहाँ के उद्योग धंधों ने बहुत बड़ी भूमिका भी निभाई.
इस वक्तव्य के साथ ही एक अन्य स्थान पर कांग्रेस पार्टी के सम्मलेन में संबोधित करते हुए सोनिया ने कहा कि पार्टी शासित केंद्र के सभी मंत्रियों समेत सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों/ मंत्रियों को स्वेच्छा से अपने विवेकाधीन अधिकारों का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि इन्हीं अधिकारों में भ्रष्टाचार पनपता है और अन्य लोगों को पार्टी और सरकार पर ऊँगली उठाने का अवसर भी मिलता है. यह सही है कि इस तरह के अधिकारों की बात तब कही गयी थी जब देश में संघर्ष कर देश सेवा करके राजनीति करने वाले लोग ही आग होते थे पर आज जिस तरह से राजनीति में हर तरह के लोगों का अचानक ही आना हो गया है उसे देखते हुए आज यह अधिकार बेईमानी का दूसरा नाम बन गया है ? जिस तरह से सोनिया ने इस बात का सन्देश पार्टी में निचले स्तर तक पहुंचा दिया है उससे तो यही लगता है कि उन्होंने यह भी तय कर लिया है कि अब इस तरह के अधिकारों का प्रयोग पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री नहीं करेंगें क्योंकि इनके ही उपयोग के नाम पर अधिक दुरूपयोग की शिकायतें सामने आती है तो इनको रोक देना ही उचित होगा.
इन दोनों संदेशों के निहितार्थ और इनके पीछे छिपी मंशा तो बहुत अच्छी लगती है पर असली मामला तो तब पता चलेगा कि केंद्र और कई राज्यों में राज कर रही कांग्रेस इस मसले पर धरातल पर कितना कुछ कर पाती है ? यह मामला अगर पार्टी चाह ले तो किसी भी स्तर पर बहुत ही आसानी के साथ निपटाया जा सकता है बस जिस तरह से संकल्प की बात की जा रही है उस पर इसी दृढ़ता के साथ अमल भी कर दिया जाए और किसी भी स्तर पर इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों को सरकार से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए तभी कुछ वास्तव में हो पायेगा ? अभी तक संप्रग सरकार ने देश की कुछ मूलभूत समस्याओं पर बहुत अच्छी तरह से ध्यान दिया है पर भ्रष्टाचार के घुन ने उसके हर प्रयास को ठेंगा दिखाने का प्रयास भी किया है ? मनेरगा में जिस तरह से सीधे गाँवों तक धन उपलब्ध कराया गया वह अपने आप में अभूतपूर्व है अपर जिस तरह से नेताओं और अधिकारियों ने इसमें भी खाने पीने का रास्ता खोज लिया अब उसी से पार पाने की आवश्यकता है ? केवल पैसा भेजकर दूसरी पार्टी की सरकार का रोना रोकर कुछ भी नहीं हासिल होने वाला है अब समय है कि कानून इतने सख्त कर दिए जाएँ कि इन मामलों में भ्रष्टाचार फ़ैलाने वालों के साथ कोई भी नरमी चाहकर भी न बरती जा सके ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
Kahne aur karne main bahut antar hota hai.
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