मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 10 जनवरी 2011

सूडान का भविष्य

               कई दशकों से गृह युद्ध की आग में जल रहे सूडान के लिए नया साल कुछ नया लेकर आ सकता है. जिस तरह से उत्तरी सूडान पर दक्षिण के लोग भेदभाव के आरोप लगाते रहे हैं और वास्तव में काफी हद तक ये आरोप सही भी पाए गए हैं उनको देखते हुए एक नए राष्ट्र के लिए लोग मतदान करने वाले हैं . सूडान के शासकों द्वारा जिस तरह से दक्षिण के मूल निवासियों के साथ अभी तक द्वेष पूर्ण आचरण किया गया है और उनके अधिकारों का हनन लगातार किया गया है उसको देखते हुए वर्तमान में चल रहा जनमत संग्रह उसी का एक हिस्सा भर है. आर्थिक रूप से देश के तेल भण्डार आदि सभी दक्षिण में ही स्थित हैं और जिस तरह से दक्षिण के लोग अब उत्तर से पीछा छुड़ाना चाहते हैं उससे यही लगता है की अब सूडान के दो हिस्से होकर ही रहेंगें और इसके बाद उत्तरी सूडान के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं रह जायेगा. 
          इस जनमत संग्रह से बहुत सारी बातें स्पष्ट हो जायेंगीं क्योंकि उत्तरी सूडान मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है और पूरी दुनिया में यह शायद पहला अवसर है जबकि किसी देश के मुस्लिम बहुसंख्यकों को छोड़कर स्थानीय आबादी द्वारा  कोई नया देश अलग से बनने जा रहा है ? अभी तक भेदभाव और द्वेष का आरोप लगाकर पूरी दुनिया में मुस्लिम आबादी अपने लिए अलग राष्ट्र की मांग करती रही है भारत का बंटवारा भी इसी तरह की मांग के चलते हुआ था और जिस बाद में धर्म के नाम पर एक नहीं रखा जा सका था ? सूडान का बँटवारा तो इस जनमत संग्रह के द्वारा हो जायेगा पर क्या वहां के आर्थिक संसाधनों पर कोई आम सहमति बन सकेगी ? अभी तक जिस तरह से उत्तरी भाग के लोग दक्षिण के दम पर मौज उड़ा रहे थे उनके लिए आने वाले समय में बहुत बड़ा संकट भी खड़ा हो सकता है ? संसाधनों के बंटवारे के समय क्या इस बात को कोई कह सकता है कि उत्तर के लोगों का समर्थन करने के लिए इस्लामी आतंकी गुट वहां के लोगों के साथ नहीं खड़े हो जायेंगें ?
        जितनी आसानी से यह जनमत संग्रह चल रहा है उस पर अमल भी अगर उतनी आसानी से ही हो जाये तो वहां की जनता को कष्टों से मुक्ति भी मिल सकती है पर इस्लामी चरमपंथियों के इस पूरे मामले में कूद पड़ने से एक बार फिर से लोगों के लिए जीने का संकट खड़ा हो सकता है ? अभी तक बहुत सारी समस्याओं को दुनिया ने झेला है पर किसी भी स्थिति में जब किसी इस्लामी बहुल भाग को अलगकर इस तरह से एक नया देश बनाने की बात हो रही है तो इस्लामी विश्व इस पर किस तरह से प्रतिक्रिया देगा यह भी आने वाले समय में पता चलेगा ? कुछ भी केवल धर्म या जातीय समूह के नाम पर इस तरह से दूसरों के साथ कब तक भेद भाव माना या किया जाता रहेगा ? कब तक दुनिया में बहुत सारे लोग इस तरह के संघर्षों में उलझते रहेंगें ? कब तक निर्दोष लोग राजनेताओं की ऊंची और झूठी महत्वकांक्षा का शिकार होते रहेगें ? फिल हाल इन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं और समय ही इनका सही जवाब दे सकता है.......
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